धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती की कविताओं में भी लोकजीवन की
अभिव्यक्ति देखने को मिलती है। संपूर्ण प्रकृति को नानाविध रंगों के साथ वे वर्णन
करते हैं। लोक जीवन में बोआई के वक्त जो गीत गाये जाये हैं, उसी को वे प्रमुख
स्थान देते हैं। बोआई का गीत नामक छोटी कविता में उनकी लोकधर्मिता की अभिव्यक्ति
का अनुभव किया जा सकता है। प्रकृति को उन्होंने वीर बहूटी के रूप में चित्रित किया
है।
गोरी-गोरी सोंधी धरती-कारे-कारे बीज
बदरा पानी है
क्यारी-क्यारी गूँज उटा संगीत
मैं बोऊँगा बीरबहूरी, इन्द्रधनुष सतरंग
नये सितारे, नयी पीढियाँ, नये धान का रंग।