शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर की कविताओं में लोक जीवन का स्वरूप स्वयमेव
उभरकर आ जाता है। वे आम जनता के पक्ष में सृजनरत बनते हैं। लोकपक्ष को बहुत ही
मार्मिकता के साथ वे कविताओं में प्रस्तुत करते हैं। प्रकृति के सभई तत्व उनकी
कविताओं में जीवंत रूप में उपस्थित होते हैं। लोक जीवन इन सभी तत्वों पर टिका रहता
है। मिट्टी की खुश्बू उनकी कविता द्वारा उपलब्ध होती है। प्रकटतः न सही शमशेर
बहादूर सिंह लोक कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। अपने स्थानीय परिवेश का वर्णन
कविता द्वारा वे व्यक्त करते हैं। शामशेर की कविता पथरीली घास भरी इस पहाडी के
ढांल पर में प्रकृति का सजीव चित्र के माध्यम से वे लोकदृष्टि को व्यक्त करते हैं-
एक अनमना-सा आधा स्केचः
धूप में चमकती, मेरी गोद में एक सफेद कापी खुली
हिलते-चमकते बहुत-हरे छोटे-बड़े पेड़े मेरे चारों
ओर खड़े
धुप से उज्जवल-नीलों आकाश में,
धुले आकाश में उज्वल, वर्षा के बादल।
माने रूई की बिखरी-बिखरी छोटी-बड़ी पूनियाँ
कभी-कभी धीमी-धीमी साफ मधुर हवा की गूँज