पाठ योजना
कक्षा :
दिनांक :
शैक्षणिक उद्देश्य :-
१ सामान्य उद्देश्य :
१) छात्रों में काव्य के प्रति रुचि उत्पन्न करवाना।
२) छात्रों को सस्वर कविता वाचन का अभ्यास कराना।
३) छात्रों में भावानुभूति तथा सौंदर्यानुभूति का विकास करवाना।
२ विशिष्ट उद्देश्य :
१) छात्र काव्य के भावों को बोधगम्य करके अपने शब्दों में प्रस्तुत कर सकेंगे।
२) छात्र गुरूजनों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करना।
३) छात्र भाव–सौंदर्य और शिल्प सौंदर्य को समझ सकेंगे।
४) छात्र ईश्वर की सर्वव्यापकता के संदेश को ग्रहण कर सकेंगे।
३ सहायक सामग्री :
निर्धारित पाठ्य पुस्तक तथा संत कवि कबीर का भाव चित्र, व्याकरण, शामपट चाँक एंव चार्ट आदि ।
४ प्रस्तुतीकरण :
सर्वप्रथम विद्यार्थियों को कबीरदास का परिचय देते हुए उनके काव्य पाठ ’ साखी ’ का भाव एंव व्याख्यान निम्नलिखित रुप से बताया जाएगा ।
व्याख्यान :- ऐसी वाणी बोलना चाहिए जिसमें मन का अहंकार न हो , ऐसी वाणी वक्ता के शरीर को शीतलता देती है और श्रोता को सुख प्रदान करती है ।
व्याख्यान :-जब तक अहंकार था तब तक ईश्वर से परिचय नहीं हो सका। अहंकार या आत्मा के भेदत्व का अनुभव जब समाप्त हो गया तो ईश्वर का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हो गया। ’मैं’ आत्मन का अलग अहसास खत्म हो जाने के बाद, एकमात्र सत्ता ब्रह्मा का अनुभव शेष रहता है। बूँद का अस्थित्व यदि समुद्र में विलिन हो गया तो बूँद भी समुद्र ही हो जाती है। शरीर के भीतर जब परम-ज्योति रूपी दीपक का प्रकाश हुआ तो अज्ञानान्धकार–जनित अहं स्वयं नष्ट हो गया। दीपक का तात्पर्य ज्ञान भी हो सकता है। ज्ञान के होने पर ’सर्व खल्विदं ब्रह्मा ’ की भावना प्रबल हो जाती है।
व्याख्यान :- गुरू कुम्हार है और शिष्य घडा है, गुरू भीतर से हाथ का सहारा देकर, बाहर से चोट मार मारकर साथ ही शिष्यों की बुराई को निकलते है।
व्याख्यान :- इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है, यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता झड जाए दुबारा डाल पर नहीं लगता।
व्याख्यान :- कबीरदास कहते है कि सभी खाकर अज्ञान की निशा में सो रहे हैं। एक मात्र कबीर दुखी हैं जो जागते हुए रो रहे हैं।
कबीर को सारा संसार मोह ग्रस्त दिखाई देता है। वह मृत्यु के छाया में रहकर भी सबसे बेखबर विषय-वासनाओं को भोगते हुए अचेत पडा है। कबीर का अज्ञात दूर हो गया है। उनमें ईश्वर के प्रेम की प्यास जाग उठी है। सांसारिकता से उनका मन विमुख हो गया है। उन्हे दोहरी पीडा से गुजरना पड रहा है। पहली पीडा है- सुखी जीवों का घोर यातनामय भविष्य, मुक्त होने के अवसर को व्यर्थ में नष्ट करने की उनकी नियति। दूसरी पीडा भगवान को पा लेने की अतिशय बेचैनी। दोहरी व्यथा से व्यथित कबीर जाग्रतावस्था में है और ईश्वर को पाने की करुण पुकार लगाए हुए है।
व्याख्यान :- कबीर कहते है कि निंदकों को आँगन में कुटिया बनाकर अपने निकट रखा जाए जिससे बिना साबुन और पानी के स्वभाव निर्मल होता रहेगा। पास स्थित निंदक दोष निकालेगा और निन्द्य व्यक्ति अपना परिमार्जन करता जाएगा। उस तरह वह बिना साबुन और पानी के ही निर्मल हो जाएगा ।
व्याख्यान :- सारे संसार के लोग पुस्तक पढते-पढते मर गये कोई भी पंडित (वास्त्विक ज्ञान रखने वाला ) नहीं हो सका । परन्तु जो अपने प्रिय परमात्मा के नाम का एक ही अक्षर जपता है (या प्रेम का एक अक्षर पढता है ) वही सच्चा ज्ञानी ( पंडित ) होता है । वही परमात्मा का सच्चा भक्त होता है ।
५ कठिन शब्दार्थ :
बाँणी = बोली, आपा=अहं, पीव=प्रिय, कुम्भ=घडा आदि।
६ विद्यार्थी – क्रियाएँ :
१) आदर्श वाचन को सुनकर तथा अनुकरण वाचन के द्वारा साखी का अर्थ तथा भाव ग्रहण करेंगे।
२) शामपट पर देखकर विभिन्न शब्दों के अर्थ तथा उदाहरण लिखेंगे ।
३) जिज्ञासा समाधान हेतु प्रश्न पूछ सकते है ।
४) दिए गए अभ्यास कार्य तथा गृहकार्य को पूर्ण करेंगे ।
५) मौखिक रुप से साखी के भाव बता सकेंगे ।
७ मूल्यांकन :
१) कबीर की साखी को मौखिक रुप से उसका भाव बोल पाएँगे ।
२) अभ्यास के प्रश्न पूछकर।
३) कठिन शब्दों के अर्थ पूछकर ।
४) चक्र परीक्षा द्वारा।
८ गृहकार्य :
कबीर की साखी की भाव और पद्य पाठ के प्रश्न लिखवाना।
पाठ का नाम : कबीर की साखी
शैक्षणिक उद्देश्य :-
१ सामान्य उद्देश्य :
१) छात्रों में काव्य के प्रति रुचि उत्पन्न करवाना।
२) छात्रों को सस्वर कविता वाचन का अभ्यास कराना।
३) छात्रों में भावानुभूति तथा सौंदर्यानुभूति का विकास करवाना।
२ विशिष्ट उद्देश्य :
१) छात्र काव्य के भावों को बोधगम्य करके अपने शब्दों में प्रस्तुत कर सकेंगे।
२) छात्र गुरूजनों के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करना।
३) छात्र भाव–सौंदर्य और शिल्प सौंदर्य को समझ सकेंगे।
४) छात्र ईश्वर की सर्वव्यापकता के संदेश को ग्रहण कर सकेंगे।
३ सहायक सामग्री :
निर्धारित पाठ्य पुस्तक तथा संत कवि कबीर का भाव चित्र, व्याकरण, शामपट चाँक एंव चार्ट आदि ।
४ प्रस्तुतीकरण :
सर्वप्रथम विद्यार्थियों को कबीरदास का परिचय देते हुए उनके काव्य पाठ ’ साखी ’ का भाव एंव व्याख्यान निम्नलिखित रुप से बताया जाएगा ।
ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ ॥
जब मैं था तब हैरि नहीं, अब हरि है मैं नाँहि ।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि ॥
गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि-गढि काढै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरूवर ज्यों पत्ता झडे, बहुरि न लागे डार।।
सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै ।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै ॥
कबीर को सारा संसार मोह ग्रस्त दिखाई देता है। वह मृत्यु के छाया में रहकर भी सबसे बेखबर विषय-वासनाओं को भोगते हुए अचेत पडा है। कबीर का अज्ञात दूर हो गया है। उनमें ईश्वर के प्रेम की प्यास जाग उठी है। सांसारिकता से उनका मन विमुख हो गया है। उन्हे दोहरी पीडा से गुजरना पड रहा है। पहली पीडा है- सुखी जीवों का घोर यातनामय भविष्य, मुक्त होने के अवसर को व्यर्थ में नष्ट करने की उनकी नियति। दूसरी पीडा भगवान को पा लेने की अतिशय बेचैनी। दोहरी व्यथा से व्यथित कबीर जाग्रतावस्था में है और ईश्वर को पाने की करुण पुकार लगाए हुए है।
निंदक नेडा राखिए आँगन कुटी बंधाई ।
बिना सांबण पांणी बिना, निरमल करै सुभाइ ॥
पोथी पढि-पढि जग मुवा, पंडित भया न कोइ ।
एकै आखिर पीव का, पढै सो पंडित होइ ॥
५ कठिन शब्दार्थ :
बाँणी = बोली, आपा=अहं, पीव=प्रिय, कुम्भ=घडा आदि।
६ विद्यार्थी – क्रियाएँ :
१) आदर्श वाचन को सुनकर तथा अनुकरण वाचन के द्वारा साखी का अर्थ तथा भाव ग्रहण करेंगे।
२) शामपट पर देखकर विभिन्न शब्दों के अर्थ तथा उदाहरण लिखेंगे ।
३) जिज्ञासा समाधान हेतु प्रश्न पूछ सकते है ।
४) दिए गए अभ्यास कार्य तथा गृहकार्य को पूर्ण करेंगे ।
५) मौखिक रुप से साखी के भाव बता सकेंगे ।
७ मूल्यांकन :
१) कबीर की साखी को मौखिक रुप से उसका भाव बोल पाएँगे ।
२) अभ्यास के प्रश्न पूछकर।
३) कठिन शब्दों के अर्थ पूछकर ।
४) चक्र परीक्षा द्वारा।
८ गृहकार्य :
कबीर की साखी की भाव और पद्य पाठ के प्रश्न लिखवाना।
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