मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य


हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको भगवान शंकर का अवतार माना जाता है। इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की और इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता। उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं, किन्तु उनका दर्शन विशेष रूप से उनके तीन भाष्यों में, जो उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता पर मिलता है। गीता और ब्रह्मसूत्र पर अन्य आचार्यों के भी भाष्य हैं, परन्तु उपनिषदों पर समन्वयात्मक भाष्य जैसा शंकराचार्य का है, वैसा अन्य किसी का नहीं है। शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के स्थायित्व, प्रचार-प्रसार एवं प्रगति में अपूर्व योगदान दिया। उनके व्यक्तितत्व में गुरु, दार्शनिक, समाज एवं धर्म सुधारक, विभिन्न मतों तथा सम्प्रदायों के समन्वयकर्ता का रूप दिखाई पड़ता है। शंकराचार्य अपने समय के उत्कृष्ट विद्वान एवं दार्शनिक थे। इतिहास में उनका स्थान इनके 'अद्वैत सिद्धान्त' के कारण अमर है। आदि शंकराचार्य को हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है। एक तरफ़ उन्होंने अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ़ उन्होंने जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया। शंकर के मायावाद पर महायान बौद्ध चिन्तन का प्रभाव माना जाता है। इसी आधार पर उन्हें 'प्रछन्न बुद्ध' कहा गया है।