रवीन्द्रनाथ त्यागी
रवीन्द्रनाथ त्यागी
रवीन्द्रनाथ त्यागी का जन्म अत्तरप्रदेश के जिला बिजनौर में स्थिति नहटौर नामक कस्बे में सितंबर, 1931 ई.में एक साधारण गरीब परिवार में हुआ था। उनका बचपन गरीबी में बीता था। वे बचपन से ही भावुक तथा संवेदनशील थे। उन दिनों कुछ गरीबी और आर्थिक कठिनाइयों का एक भयंकर दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में इन सब बातों का उनके कोमल एवं संवेदनशील मन पर असर होना स्वाभाविक था। रवीन्द्रनाथ त्यागी के दादा जी का नाम पं. चन्दनसिह त्यागी था। पं. मुरारी दत्त शर्मा कविराज और चमेली देवी उनके माँ-बाप थे। उन्होंने अपने पिता के संबंध में लिखा है- “ वे निहायत सफाई पसन्द संगीत प्रेमी और प्रत्येक प्रकार की सुन्दरता के उपासक थे। उनका हस्तलेख मोती जैसी था”। उनके जैसे हस्तलेख को लिख सकने का सवीन्द्रनाथ ने बहुत प्रयास किया। अपने अकर्मण्य पिता के प्रति त्यागी के मन में घृणा पैदा हो गई थी। किन्तु यही पिता जब घर छोड़कर कहीं चले जाने की धमकी देते तो वे अपने भाइयों के साथ रोने लग जाते थे। इस संबंध में उन्होंने लिखा है – “ पहली बार मुझे पता लगा कि आप एक ही इन्सान से प्यार और नफरत एक साथ कर सकते हैं और काफी मात्रा में कर सकते हैं। हो सकता है, दोनों नाम एक ही चीज के हो ”। त्यागी का बचपन भले ही गरीबी में बीता हो, उन्हेंने अपने बचपन की अनेक मनोरंजक बातों लिखी हैं। उसने प्राथमिक पाठशाला के अध्यापक के संबंध में लिखा है, “ वह बड़ा दिलचस्प इन्सान था, मेरे ख्याल से अगर वह किसी सरकस में होता तो बड़ा नाम पैदा करता ”। त्यागी के परिवार के सदस्यों में उनकी प्रेम नाम की बहन उनसे बहुत प्यार करती थी। ससुराल धनवान होने के कारण वह अपने भाई की किताबें, कपड़े आदि का प्रबंध भी करती थी। उनकी छोटी बहन सूत कात कर भाई की पढ़ाई की खातिर पैसे इकट्टे करती थी। त्यागी जी एक दयालु हेडमास्टर की दया से स्कूल में भरती हो गये। आगे पढ़ते ही गये। अन्त में उन्होंने इन स्थितियों से गुजरते हुए प्रयाग विश्वविद्यालय से एम.ए. अर्थशास्त्र में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। वे नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मैनिजमेंट एण्ड एकान्ट्स के डाईरेक्टर हैं। उनका दफ्तर मेरठ छावनी में स्थित है। आज उनको प्रतिष्ठा प्राप्त हो गई है। उनके पास प्रतिभा है। साहित्य के प्रति उन्हें प्रेम है। उनका ईश्वर की सत्ता पर विश्वास है। ईश्वर, धर्म, परम्परा आदि में उनकी पूर्ण आस्था है। त्यागी के परिवार में वे स्वयं उनकी माँ चमेली देवी तथा उनकी पत्नी शारदा। दो बच्चे जिनमें से लड़की का नाम इंदु और लड़के का नाम अशोक है। लड़का विवाहित है। उनके शौक हैं छुट्टियों में पिकनिक पर जाना, पहाड़ों की सैर करना, रेल में खिड़कीवाली सीट पर बैठकर यात्रा करना, ग्रामोफोन पर पुराने गाने सुनने, जूते पालिश करना और फर्निचर पेंट करना या किताबों की जिल्दें बाँधना आदि। उनका स्वभाव नम्र और संकोची हैं। त्यागी के प्रारंभिक जीवन और पढ़ाई में आयी कठिनाइयों को देखते हुए उनके व्यक्तित्व के बारे में कुछ बातों स्पष्ट हो जाती हैं। जिनमें पढ़ाई की लगन, स्थितियों से संघर्ष करने का साहस, दुःख भरी स्थितियों से गुजर कर भी संवेदनशीलता को बनाये रखना आदि महत्वपूर्ण हैं। कभी-कभी बड़े व्यक्तियों की संगति भी आदमी को स्तिथियों से उबरने में सहायक होती है। हिन्दी की बड़ी विभूतियों में से निराला, पन्त, पदुमलालबख्शी, महादेवी, अश्क, धर्मवीर भारती, बच्चन और जगदीश गुप्त आदि को करीब से देखने का उन्हें मौका मिला। दुष्यन्त कुमार, कमलेश्वर रामावतार चेतन और रमेश कुन्तल मेघ उने सहपाठी रहे। त्यागी जी की पहली कविता दुष्यन्त कुमार ने ही छपवायी। भारती जी ने उन्हें परिमल में शामिल करवाया। अज्ञेय, इलाचन्द्र जोशी, लक्ष्मीकांत वर्मा जैसी विभूतियों के दर्शन उन्हें वहीं हुए। इन बड़े साहित्यिकों के साथ रहकर त्यागी के अन्दर जो लेखन की इच्छा थी वह फूटकर बाहर आगई और वे लिखते ही चले गये। त्यागी जी ने अपने लेखन का सारा श्रेय हिन्दी की इन्हीं बड़ी विभूतियों को दिया है। त्यागी जी मूल्तः कवि ही रहे, उनके पाँच काव्य-संकलन भी हैं। कवि होने के कारण आषाढ के मेघ, भाद्रपद की सांझ, शरद की पूर्णिमा, पलाश के दहकते फूल और सुन्दर कम उम्र लड़कियों के ओंठ त्यागी के आकर्षण के केन्द्र रहे। कवि से व्यंग्य लेखक कैसे बने इसके संबंध में त्यागी जी ने लिखा है, “ उनको (संपादकों) दुआएँ दो, हमें कातिल बना दिया। लिखते-लिखते पता लगा कि मैं हास्य लिख सकता हूँ कभी अच्छे खासे स्तर का भी लिख सकता हूँ। मगर सयाने पाठक उदासी की रेखा उसमें भी देखते होंगे। ” इससे स्पष्ट है कि त्यागी अपने व्यंग्य लेखक बनने का श्रेय संपादकों को देते हैं। इन सब बातों से उनके कवि एवं लेखकीय व्यक्तित्व से हम परिचित हो जाते हैं।