शुक्रवार, 22 मई 2020

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें (कविता) - शमशेर बहादुर सिंह

चाँद से थोड़ी-सी गप्पें (कविता) - शमशेर बहादुर सिंह 
(दस-ग्यारह साल की एक लड़की) 


गोल हैं खूब मगर 
आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा। 
आप पहने हुए हैं कुल आकाश 
तारों - जड़ा ; 
सिर्फ़ मुँह खोले हुए हैं अपना 
गोरा - चिट्टा 
गोल - मटोल, 

अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त। 
आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे 
- खूब हैं गोकि! 
वाह जी, वाह! 

हमको बुद्धू ही निरा समझा है! 
हम समझते ही नहीं जैसे कि 
आपको बीमारी है : 

आप घटते हैं तो घटते ही चले जाते हैं, 
और बढ़ते हैं तो बस यानी कि 
बढ़ते ही चले जाते हैं 
दम नहीं लेते हैं जब तक बि ल कु ल ही 
गोल न हो जाएँ, 
बिलकुल गोल। 

यह मरज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में... 
आता है।