गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

जायसी | मानसरोदक खण्ड | मिलहिं रहसि सब चढ़हि हिडोरी झूलि लेहि सुख बारी भोरी।

जायसी - मानसरोदक खण्ड

(3)

मिलहिं रहसि सब चढ़हि हिडोरी झूलि लेहि सुख बारी भोरी।

झूलि लेहु नैहर जब ताई, फिरि नहिं झूलन देशह साई।

पुनि सासुर लेइ राखिहि तहाँ, नैहर चाह न पाउब जहाँ।

कित यह धूप कहाँ यह छाहाँ, रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ।

गुन पूछिहि और लाइहि दोखू, कौन उत्तर पाउब तहँ मोखू।

सासु ननद के भौह सिकोरे, रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे।

किन रहसि जो आउब करना ससुरेइ अंत जनम दुख भरना।

कित तैहर पुनि आउब, कित ससुरे यह खेल।

आपु आपु कहँ होइहि, परब पंखि जस डेल।

शब्दार्थः

रहसि = रहेंगी। हिंडोरी = झूला। पाउब = पायेंगी । छाहाँ = छाँव, छाया। मोखू = मोक्ष । सिकोरे = सिकोडेगी। साईं = परमात्मा । परब = भावार्थ: झूठा । परिव = पक्षी । डेल = पिंजहा।

भावार्थ:

सखियाँ आपस में कहती हैं, "अभी हम मिलजुल कर झूला झूलेंगी। कारी बारी से हम झूला झूल कर हम भोली कन्याएँ सुख प्राप्त करेंगी। नैहर में रहने पर ही यह झूला झूलेंगी। फिर भगवान हमें झूलने नीं देगा। फिल हमें ससुराल जाकर रहना पडेगा। तब हम कहाँ नैहर पायेंगी। यह धूप, यह छाँव, यह वातावरण, ग्रह मंदिर, ये सखियाँ आदि फिर हमें कहाँ प्राप्त होंगे। गुणों के बारे में पूछताछ कर के दोष बताये जायेंगे और किस प्रकार का उत्तर देकर वहाँ मोक्ष प्राप्त करेंगी। सास और ननद भौंहे सिकुडेंगी और हमें दोनों हाथ जोड़ कर संकोच में रहना पडेगा। फिर कब यहाँ आना होगा और ससुराल में ही जन्म का दुख भोगते हुए पडा रहना होगा।

कहाँ फिर नैहर में आयेंगी और कहाँ ससुराल पर यह खेल होगा? हम सब अपने-अपने ससुराल पर ही पिंजडे में पक्षी की तरह रहेंगी।

विशेषताएँ:

जायसी ससुराल में बधुओं की दयनीय स्थिति का वर्णन करते हैं।