गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

जायसी | मानसरोदक खण्ड | सरवर तीर पदुमिनी आई, खोंपा छोरि केस मुकलाई | JAYASI | PADMAVATH

जायसी - मानसरोदक खण्ड

(4)

सरवर तीर पदुमिनी आई, खोंपा छोरि केस मुकलाई

ससि-मुख अंग मलयगिरि बासा, नागिन झाँपि वीन्ह चहुँ पासा

ओनये मेघ परी जग छाहाँ, ससि कै सरन लीन्ह जनु राहाँ

छपि गौ दिनहि भानु कै दसा, लेइ निसि नखंत चाँद परगसा

भलि चकोर दीठि मुख लावा, मेघ घटा महँ चन्द देखावा

दसन दामिनी कोकिल भाखी, भौंहें धनुखं गगन लेइ राखी

सरवर रूप बिमोहा, हियें हिलोरहि लेइ

पावँ छुवै मकु पावौं, येहि मिस लहरैं देइ

शब्दार्थ 

खोंपा = जूडा। छोरि = खोलकर । मोकराई = फैलाया। अरधानी = सुगन्धि के लिए। ओनए = छाजाने से। राहाँ = रहुने | दिस्टि = दृष्टिं | विमोहा = मोहित हो गया । मकु = स्यात | मिसु = बहाने से।

भावार्थ:

पदिमनी जाति की वे स्त्रियाँ सरोवर के किनारे आयी और अपने जूडे खोलकर बालों को फैला दिया। पद्मावती रानी का मुख चन्द्रमा के समान और शरीर मलयाचल की भाँति है। उस पर बिखरे हुए बाल ऐसे लगते हैं जैसे सर्पों ने सुगंध के लिए उसे ढ़क लिया हो। फिर ऐसा लगता है कि वे बाल मानो मेघ ही उमड आये हों जिससे सारे जगत में छाया फैल गयी। मुख के समीप बाल ऐसे लगते हैं मानो राहुने चन्द्रमा की शरण लेली हो। केश इतने घने और काले हैं कि दिन होते हुए भी सूर्यका प्रकाश छिंप गया है। और चन्द्रमा रात में नक्षत्रों को लेकर प्रकट हो गया। चकोर भूल कर उस ओर लगा रहा क्यों कि उसे मेघों की घटा के बीच पद्मावती का मुख रूपी चन्द्रमा दिखाई दे रहा पद्मावती के दाँत बिजलीके समान चमकीले थे और वह कोयल के समान मधुर भाषिणी थी। भौंहें ओकाश में इन्प्रधनुषलग रही थीं . नेत्र क्रीडाकरनेवाले खंजन पक्षी लग रही थीं।

मानसरोवर पद्मावती के रूप को देख कर मोहित हो गया। हृदय में वह कामना रूपी लहरें भरने लगा। लहरें पद्माती के चरणों को स्पर्श करने के बहाने उभर रही थी।

विशेषताएँ:

यहाँ उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा और भ्रान्तिमान अलंकार प्रयुक्त हुए है।