ईदगाह - प्रेमचंद
प्रेमचंद बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास दोनों ही लिखे हैं। वे भारत के श्रेष्ठतम कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में जानते हैं। ईदगाह मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी में दादी और पोते का मार्मिक प्रेम दर्शाया गया है। इस में कथन व संदर्भ, वातावरण का सजीव चित्रण है। इस में बाल्यावस्था की निर्मल भावनाओं का सुंदर प्रतिबिंब दर्शाया गया है। ईदगाह कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। इस कहानी में हामिद के मनोभावों और परिस्थितियों का सूक्ष्म चित्रण मिलता है।
कहानी के मुख्य पात्र
हामिद, अमीना, महमूद, मोहसिन, नूरे, सम्मी
रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात! वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है। खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है! मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है! ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न है। बार-बार जेब से खज़ाना निकालकर गिनते हैं। महमूद गिनता है, एक दो... दस-बारह। उसके पास बारह पैसे हैं। मोहसिन के पास पंद्रह पैसे हैं। इनसे अनगिनत चीजें लाएँगे–खिलौने, मिठाइयाँ, बिगुल, गेंद और न जाने क्या-क्या। और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। वह भोली सूरत का चार-पांच साल का दुबला-पतला लड़का था। उसका पिता गत वर्ष हैजे की भेंट हो गया और माँ न जाने क्यों पीली पड़ती गयी और एक दिन वह भी परलोक सिधार गयी। किसी को पता न चला कि आखिर अचानक यह क्या हुआ।
अब हामिद अपनी दादी अमीना की गोदी में सोता है। दादी अम्मा हामिद से कहती है कि उसके अब्बाजान रुपये कमाने गये हैं। अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से उसके लिए बहुत-सी अच्छी चीजें लाने गयी हैं। आशा तो बड़ी चीज़ है। हामिद के पाँव में जूते नहीं हैं, सिर पर एक पुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है। फिर भी वह प्रसन्न है। अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन है और उसके घर में दाना तक नहीं है। लेकिन हामिद! उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा की किरण। हामिद भीतर जाकर दादी से कहता है - "तुम डरना नहीं अम्मा, मैं सबसे पहले आऊँगा। बिलकुल न डरना। अमीना का दिल कचोट रहा है। गाँव के बच्चे अपने पिता के साथ जा रहे हैं। हामिद का प्रश्न अमीना के सिवा कौन है? भीड़ में बच्चा कहीं खो गया तो क्या होगा? तीन कोस चलेगा कैसे? पैरों में छाले पड़ जाएँगे।
जूते भी तो नहीं हैं। वह थोड़ी दूर चलकर, उसे गोदी ले लेगी, लेकिन यहाँ सेवइयाँ कौन पकाएगा? पैसे होते तो लौटते लौटते सारी सामग्री जमा करके झटपट बना लेती। यहाँ तो चीजें जमा करते-करते घंटों लगेंगे। गाँव से मेला चला। और बच्चों के साथ हामिद जा रहा था। शहर का दामन आ गया। सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे हैं। बड़ी-बड़ी इमारतें- अदालत, कॉलेज, क्लब, घर आदि दिखायी देने लगे। ईदगाह जानेवालों की टोलियाँ नज़र आने लगीं। एक-से-एक भड़कीले वस्त्र पहने हुए हैं। सहसा ईदगाह नज़र आयी और उसी के पास ईद का मेला। नमाज़ पूरी होते ही सब बच्चे मिठाई और खिलौनों की दुकानों पर धावा बोल देते हैं। हामिद दूर खड़ा है। उसके पास केवल तीन पैसे हैं। मोहसिन भिश्ती तो खरीदता है, महमूद सिपाही, नूरे वकील और सम्मी धोबिन। हामिद खिलौनों को ललचाई आँखों से देखता है।
वह अपने आपको समझाता है, “मिट्टी के तो हैं, गिरें तो चकनाचूर हो जाएँ। ”फिर मिठाइयों की दुकानें आती हैं। किसी ने रेवड़ियाँ लीं, किसी ने गुलाबजामुन, किसी ने सोहन हलवा। मोहसिन कहता है, “हामिद, रेवड़ी ले ले, कितनी खुशबूदार है।" हामिद ने कहा, "रखे रहो, क्या मेरे पास पैसे नहीं है? "सम्मी बोला, "तीन ही पैसे तो हैं, तीन पैसे में क्या-क्या लोगे? "हामिद मौन रह गया। मिठाइयों के बाद लोहे की चीज़ों की दुकानें आती हैं। कई चिमटे रखे हुए थे। हामिद को ख्याल आता है, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती हैं तो हाथ जल जाते हैं, अगर चिमटा ले जाकर दादी को दे दें, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी। फिर उनकी उँगलियाँ कभी नहीं जलेंगी। दादी अम्मा चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी- "मेरा बच्चा! अम्मा के लिए चिमटा लाया है। हज़ारों दुआएँ देती रहेंगी। फिर पड़ोस की औरतों को दिखाएँगी। सारे गाँव में चर्चा होने लगेगी। हामिद चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का है। बड़ों की दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं और तुरंत सुनी जाती हैं। हामिद ने दुकानदार से पूछा, “यह चिमटा कितने का है? "छह पैसे कीमत सुनकर हामिद का दिल बैठ गया। हामिद ने कलेजा मज़बूत करके कहा, " तीन पैसे लोगे? "दुकानदार ने बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानो बंदूक हो और शान से अकड़ता हुआ संगियों के पास आया। दोस्तों ने मजाक किया, “यह चिमटा क्यों लाया पगले! इसे क्या करेगा? "घर आने पर अमीना हामिद की आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगीं। सहसा हाथ में चिमटा देखकर वह चौकी। "यह चिमटा कहाँ से लाया?" "मैंने मोल लिया है अम्मा। "कितने पैसे में?" "तीन पैसे दिये। अमीना ने अपने माथे पर हाथ रखा। वह अफ़सोस करती हुई, आह! भरती हुई बोली - “यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुई, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा! सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?
हामिद ने अपराधी भाव से कहा, “ तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, यह मुझसे देखा न जाता था अम्मा। इसलिए मैं इसे लिवा लाया। "अमीना का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया। यह मूक स्नेह था मार्मिक प्रेम था जो रस और स्वाद से भरा। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा! वहाँ भी अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया। आँचल फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जातीं और आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूंदें गिरानी जाती थीं। हामिद इसका रहस्य क्या समझता!