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कबीरदास के दोहे - KABIRDAS KE DOHE
सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै॥
कबीरदास ने उपर्युक्त दोहे में ईश्वर को पाकर माया विमुक्त होने की बात समझाया है।
कबीरदास जी कहते हैं कि संसार के लोग अज्ञान रूपी अंधकार में डूबे हुए हैं और निशा में सो रहे हैं। अपनी मृत्यु आदि से भी अनजान सोये हुये हैं। एक मात्र कबीर दुखी हैं जो जागते हुए रो रहे हैं क्योंकि वह ईश्वर को पाने की आशा में हमेशा चिंता में जागते रहते हैं।
कबीर को सारा संसार मोह ग्रस्त दिखाई देता है। वह मृत्यु के छाया में रहकर भी सबसे बेखबर विषय-वासनाओं को भोगते हुए अचेत पडा है। कबीर का अज्ञान दूर हो गया है। उनमें ईश्वर के प्रेम की प्यास जाग उठी है। सांसारिकता से उनका मन विरक्त हो गया है। उन्हे दोहरी पीडा से गुजरना पड रहा है। पहली पीडा है - सुखी जीवों का घोर यातनामय भविष्य, मुक्त होने के अवसर को व्यर्थ में नष्ट करने की उनकी नियति। दूसरी पीडा भगवान को पा लेने की अतिशय बेचैनी। दोहरी व्यथा से व्यथित कबीर जाग्रतावस्था में है और ईश्वर को पाने की करुण पुकार लगाए हुए है।
कठिन शब्दार्थ :
सुखिया - सुखी
अरु - अज्ञान रूपी अंधकार
सोवै - सोये हुए
दुखिया - दुःखी
रोवै - रो रहे