भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी
श्रीमती कृष्णा हठी सिंह ने अपनी पुस्तक 'हम नेहरू' में एक प्रसंग का उल्लेख किया है। उनके पास बैठी नन्हीं इन्दु कुछ बुदबुदा रही थी। उन्होंने पूछा “यह क्या हो रहा है?” इन्दु ने अपने घने काले बालों से घिरे चमकते चेहरे को उठाया और दृढ़ता से कहा “जोन आफ आर्क बनने की कोशिश कर रही हैं। एक दिन उसी की तरह मैं भी अपने लोगां की सेवा करूँगी उनका नेतृत्व करूँगी” आगे चलकर वह नन्ही बच्ची इन्दु भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुई इन्दिरा जी का बचपन का नाम इन्दिरा प्रियदर्शिनी था। सब प्यार से इन्हें इन्दु बुलाते थे।
जन्म - 19 नवम्बर 1917
स्थान – इलाहाबाद
पिता का नाम - पं. जवाहर लाल नेहरू
माता का नाम - श्रीमती कमला नेहरू
पति का नाम - श्री फिरोज गांधी
मृत्यु - 31 अक्टूबर 1984
पं. मोती लाल नेहरू की पौत्री तथा पं. जवाहर लाल नेहरू की पुत्री इन्दिरा के रोम रोम में देश-प्रेम की भावना थी। जब वह मात्र तेरह वर्ष की थीं एक दिन कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में जा पहुँचीं और बोलीं “मुझे भी कांग्रेस का सदस्य बनना है।”
उनसे कहा गया, “तुम अभी बहुत छोटी हो बड़ी हो जाओ तुम्हें सदस्य बना देंगे" इन्दिरा जी को यह बात जँची नहीं। उन्होंने संकल्प किया कि मैं अपनी कांग्रेस स्वयं बनाउँगी। उन्होंने बच्चों की बिग्रेड बनायी। इसमें वयस्क शामिल नहीं हो सकते थे। इन्दिरा जी ने इसका नाम “वानर सेना" रखा। इस "वानर सेना” का मुख्य कार्य स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता करना था।
वानर सेना के बालक-बालिकाएँ सन्देश पहुँचाने, प्राथमिक सहायता करने, खाने की व्यवस्था करने तथा झण्डा फहराने जैसे सरल परन्तु महत्वपूर्ण कार्य करते थे।
पण्डित जवाहर लाल नेहरू अपनी प्रियदर्शिनी को ऐसी शिक्षा देना चाहते थे कि, उनके व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास हो सके। पं. नेहरू व उनकी पत्नी के स्वतन्तरता आन्दोलन में सक्रिय होने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। इसका प्रियदर्शिनी की शिक्षा पर असर पड़ा। वे लगातार एक ही जगह स्थिर रहकर शिक्षा ग्रहण न कर सकीं। उन्होंने दिल्ली, इलाहाबाद और पुणे के स्कूलों में शिक्षा पायी। पुणे से मैटी कुलेशनश्की परीक्षा पास करने के बाद वे गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शान्ति निकेतन में आ गयीं। यहाँ पढाई लिखाई के साथ उन्हों ने नन्दलाल बोस से चित्रकला सीखी।
एक बार एक विदेशी प्रोफेसर कला भवन में भाषण देने आए। कलाभवन में जूते पहन कर जाना मना था। वे भूलवश जूते पहन कर कलाभवन में प्रवेश कर गए। जब तीन चार दिन तक ऐसा ही होता रहा तो एक दिन प्रोफेसर के प्रवेश करते ही सारे विद्यार्थी अनुशासित तरीके से कतारबद्ध होकर कक्ष से बाहर हो गये। शिकायत गुरुदेव के पास पहुँची। जाँच करने पर मालूम हुआ कि विरोधी दल का नेतृत्व इन्दिरा ने किया था। गुरुदेव मुस्कराये सत्य की ऐसी पकड़ और अनुशासन के प्रति ऐसी आस्था देखकर उन्होंने उसी दिन भविष्यवाणी की “यह बालिका असाधारण है और इसमें संकल्पों को जीने की शक्ति है।” इन्दिरा जी के व्यक्तित्व पर पं. नेहरू का बहुत प्रभाव पड़ा। पिता पुत्री के सम्बन्ध बेहद आत्मीय थे। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान पं. नेहरू को कई बार जेल जाना पड़ा वे जेल से पत्रों द्वारा पुत्री से सम्पर्क बनाए रखते थे। पत्रों का संग्रह ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम' से प्रकाशित हुआ है। नेहरू जी द्वारा नैनी जेल से इन्दिरा जी को लिखे एक पत्र के कुछ अंश:
कई बार हम संदेह में भी पड़ जाते हैं कि हम क्या करें क्या न करें? यह निश्चय करना कोई सरल कार्य नहीं है। जब भी तुम्हें ऐसा संदेह हो तो ठीक बात का निश्चय करने के तुम्हें एक छोटा सा उपाय बताता हूँ। तुम कोई भी काम ऐसा न करना जिसे दूसरों से छिपाने की इच्छा तुम्हारे मन में उठे। किसी बात को छिपाने की इच्छा तभी होती है जब तुम कोई गलत काम करती हो। बहादुर बनो और सब कुछ स्वयं ही ठीक हो जायेगा। यदि तुम बहादुर बनोगी तो तुम ऐसी कोई बात नहीं करोगी जिससे तुम्हें डरना पड़े या जिसे करने में तुम्हें लज्जित होना पड़े।
निर्भीकता और आत्मविश्वास जैसे गुण उन्हें पिता से विरासत में मिले थे। इन्दिरा जी कठिन परिस्थितियों में धैर्य खोये बिना स्वविवेक से निर्णय लेने में सक्षम थीं। इन विलक्षण गुणों ने इन्दिरा जी को राजनीति के उच्चशिखर पर पहुँचा दिया। उनके पिता ने उन्हें गहन राजनीतिक प्रशिक्षण दिया था। वह लगातार 29 वर्ष तक पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राजनीतिक कार्यों में उनकी सहायता करती रहीं। इन्दिरा जी ने अपने पिता के साथ अनेक देशों की यात्रायें भी की। इस बीच सन 1942 ई. में श्री फिरोज गांधी के साथ उनका विवाह हो गया। उनके दो पुत्र थे राजीव गांधी व संजय गांधी ये दोनों भी राजनीति के क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे। राजीव गांधी उनकी मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बने परन्तु संजय गांधी का युवावस्था में एक दुर्घटना में देहान्त हो गया, इन्दिरा जी ने इस सदमे को बहुत धैर्य व साहस से झेला।
इन्दिरा जी का राजनीतिक सफरनामा:
**सन् 1958 में वे कांग्रेस के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड की सदस्या बनीं।
**सन् 1959 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गयीं।
**सन् 1962 में यूनेस्को अधिशासी मण्डल की सदस्य चुनी गयीं।
**श्री लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमण्डल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं।
** 24 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1977 तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं।
**दूसरी बार 14 जनवरी 1980 से 31 अक्टूबर 1984 तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं।
प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करते हुए उन्हें भारत-पाक युद्ध का भी सामना करना पड़ा। इस कठिन समय में उन्होंने अभूतपूर्व धैर्य और साहस का परिचय दिया। इन्दिरा जी के कुशल नेतृत्व में भारतीय सेना ने पकिस्तानी सेना के छक्के छुडा दिए। श्रीमती गांधी के अदम्य साहस के बारे में एक ब्रिटिश दैनिक की संवाददाता ने लिखा था कि अनेक भारतीय सैनिक अधिकारियों तथा जवानों ने मुझे बताया कि अक्सर घमासान लड़ाई के बीच साड़ी पहने एक दुबली सी आकृति आ जाती थी। वह इन्दिरा जी हुआ करती थीं जो कि फौज की खैरियत जानने के लिए उत्सुक रहती थीं।
एक महत्वपूर्ण निर्णय
सन् 1971 ई. की लड़ाई में श्रीमती गांधी ने एक तरफा युद्ध विराम की घोषणा की और पाकिस्तान की पराजय हुयी। इसी युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्ला देश का जन्म हुआ। इसका श्रेय इन्दिरा जी को जाता है। इस युद्ध से भारत एशिया की प्रमुख शक्ति बनकर उभरा और इन्दिरा जी विश्व की प्रमुख नेता के रूप में उभर कर सामने आयीं।
इन्दिरा जी के राजनैतिक जीवन में यों तो कई उतार-चढ़ाव आये परन्तु सन् 1977 ई. के आम चुनाव में उनकी पार्टी की हार से उन्हें कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ा। दरअसल श्रीमती गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा ही उनकी पार्टी की हार का कारण बनी। उनके इस निर्णय से जनता रुष्ट हो गयी परन्तु वे जनता पर अपने अटूट विश्वास के सहारे पुनः सत्तारूढ़ हुयीं। वे सदैव विश्वशांति की प्रबल पक्षधर रहीं। उनका व्यक्तित्व ऐसे समय में उभरा जब राष्ट्र अनेक प्रकार के संकट और समस्याओं से घिरा था। एक राजनीतिक योद्धा के रूप में उन्होंने इस देश की सेवा अपनी सम्पूर्ण क्षमता से की, ताकि विश्व में देश का मान-सम्मान बढ़े। अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक महवपूर्ण कार्यक्रम चलाये। उन्होंने देश की दुखती रग को समझा और 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया।
बीस सूत्रीय कार्यक्रम के द्वारा इन्दिरा जी ने अनेक मोर्चों पर महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अर्जित कीं। विज्ञान और तकनीकी विकास के नए द्वार खोले परमाणु शक्ति का विकास किया तथा देश को अन्तरिक्ष युग में पहुँचाया। कैप्टन राकेशशर्मा द्वारा अंतरिक्ष यात्रा उनके प्रधानमंत्रित्व काल की महँत्वपूर्ण उपलब्धि है। वे निरन्तर देश को प्रगतिशील तथा समृद्धिशाली बनाने के प्रयास में जुटी रहीं। इन्दिरा जी के शासनकाल में खेलकूद को बहुत प्रोत्साहन मिला। सन् 1982 ई. में एशियाड़ खेलों का भव्य आयोजन हुआ। उन्हें अपने जीवन काल में देशवासियों का अपार स्नेह और सम्मान मिला। उनके रोम-रोम में देशप्रेम व्याप्त था। 30 अक्टूबर 1984 ई. को उडीसा में दिया गया उनका भाषण इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
“देश सर्वोपरि है। अगर मैं देश की सेवा करते हुए मर भी जाती हूँ तो मुझे इस पर नाज होगा। मुझे विश्वास है कि मेरे खून का हर कतरा इस राष्ट्र के विकास में योगदान करेगा और इसे मजबूत और गतिशील बनाएगा”। - श्रीमती इन्दिरा गांधी
यह इस देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अपने इस भाषण के अगले ही दिन भारत की यह महान सुपुत्री इन्दिरा अपने ही अंगरक्षक की गोलियों का निशाना बन गयीं। यद्यपि आज वे हमारे बीच नहीं है परन्तु उनकी स्मृतियाँ हर भारतीय के दिल में चिरस्थायी रहेगी।