सरोजिनी नायडू
”माँ मैंने एक कविता लिखी है सुनोगी?“ माता ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा, “लेकिन तुम तो गणित का प्रश्न हल कर रही थी। हाँ कर रही थी पर वह समझ में नहीं आया। अभी तो एक कविता लिखी है।” बेटी के बार-बार कहने पर माँ उनकी कविता सुनने बैठ गयीं उसी समय सरोजिनी के पिता भी आ गए। ग्यारह वर्ष की बिटिया के मुख से इतनी सुन्दर, सुरीली कविता सुनकर माता-पिता गद्गद हो गए। बेटी को शाबाशी देते उन्होंने कहा, “अरे तू तो गाने वाली चिडिया जैसी है। माता-पिता की यह बात सच हुई। आगे चल कर सरोजिनी “भारत कोकिला” के नाम से प्रसिद्ध हुई।
सरोजिनी का जन्म 13 फरवरी 1879 ई. को हैदराबाद में हुआ था। पिता अघोर नाथ चट्टोपाध्याय तथा माता वरदासुन्दरी की कविता लेखन में विशेष रुचि थी। सरोजिनी को अपने माता-पिता से कविता सृजन की प्रेरणा मिली।
बारह साल की उम्र में सरोजिनी ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। इंग्लैण्ड में सरोजिनी का परिचय साहित्यकार एडमंड गॉस से हुआ। सरोजिनी की कविता लिखने में रुचि देखकर उन्होंने भारतीय समाज को ध्यान में रखकर लिखने का सुझाव दिया। इंग्लैण्ड में सरोजिनी के तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए।
1. द गोल्डेन थरेश होल्ड
2. द ब्रोकेन विंग
3. द सेप्टर्ड फ्लूट
द गोल्डेन थ्रेश होल्ड की कुछ पंक्तियाँ “लिए बाँसुरी हाथों में हम घूमे गाते-गाते मनुष्य सब हैं बन्धु हमारे, जग सारा अपना है”
गोपाल कृष्ण गोखले तथा महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आने के बाद सरोजिनी नायडू राष्ट्रप्रेम तथा मातृभूमि को सम्बोधित कर कवितायें लिखने लगीं।
“श्रम करते हैं हम कि समृद्ध हो तुम्हारी जागृति का क्षण हो चुका जागरण अब देखो, निकला दिन कितना उज्ज्वल!"..
इंग्लैंड से वापस आने पर सरोजिनी का विवाह गोविन्दराजुल नायड़ के साथ हुआ। गोविन्दराजुल नायड़ हैदराबाद के रहने वाले थे और सेना में डॉक्टर थे।
सरोजिनी नायडू की भेंट गाँधी जी से हुई। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में स्वयं सेवक के रूप में काम किया।
गोपाल कृष्ण गोखले सरोजिनी नायडू के अच्छे मित्र थे। वे उस समय भारत को अंग्रेजी सरकार से मुक्त कराने का कार्य कर रहे थे। सरोजिनी नायडू गोपाल कृष्ण गोखले के कार्य से प्रभावित हुई। उन्हों ने कहा, “देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा देखकर कोई भी ईमानदार व्यक्ति बैठकर केवल गीत नहीं गुनगुना सकता। कवयित्री होने की सार्थकता इसी में है कि संकट की घड़ी में, निराशा और पराजय के क्षणों में आशा का सन्देश दे सकूँ।" सरोजिनी नायडू का ज्यादातर समय राजनीतिक कार्यों में व्यतीत होता था। वे कांग्रेस की प्रवक्ता बन गयीं। उन्होंने देश भर में घूम-घूम कर स्वाधीनता का सन्देश फैलाया।
सरोजिनी नायडू ने हिन्दू मुस्लिम एकता पर जोर दिया। उन्होंने अशिक्षा, अज्ञानता और अन्धविश्वास को दूर करने के लिए लोगों से निवेदन की। उनका कहना था कि “देश की उन्नति के लिए रूढ़ियों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों के बोझ को उतार फेंकना होगा।"
1925 ई. में जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं तो गाँधी जी ने उत्साह भरे शब्दों में उनका स्वागत किया और कहा “पहली बार एक भारतीय महिला को देश की सबसे बड़ी सौगात मिली है।"
हृदय रोग से पीड़ित होते हुए भी सरोजिनी नायड़ ने इंग्लैण्ड, अमेरिका आदि देशों का दौरा किया।
“नमक कानून तोड़ो आन्दोलन" में गाँधी जी की डांडी यात्रा में उनके साथ रहीं।
सरोजिनी नायडू अद्भुत वक्ता थीं। वे बोलना शुरू करतीं तो लोग उनके धारा परवाह भाषण को मन्त्र-मुग्ध होकर सुनते थे। उनके भाषण स्वतंत्रता की चेतना जगाने में जादू का काम करते थे।
1942 में गाँधी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया। आजादी की लड़ाई में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। अन्ततः भारत को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। सरोजिनी नायड़ उत्तर प्रदेश की राज्यपाल बनीं।
सरोजिनी नायडू जानती थीं कि नारी अपने परिवार, देश के लिए कितना महान कार्य कर सकती है। नारी विकास को ध्यान में रखकर वे अखिल भारतीय महिला परिषद् (आल इण्डिया वूमेन कांफ्रेस) की सदस्य बनीं। विजय लक्ष्मी पंडित, कमला देवी चट्टोपाध्याय, लक्ष्मी मेनन, हंसाबेन मेहता आदि महिलायें इस संस्था से जुड़ी थीं।
सरोजिनी नायडू का व्यवहार बहुत सामान्य था। वे राजनीतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के बावजूद भी गीत और चुटकलों में आनन्द लिया करती थीं। युवा वर्ग की सुविधाओं की ओर उनका विशेष ध्यान था। सरोजिनी नायडू का विश्वास था कि सुदृढ, सुयोग्य युवा पीढ़ी राष्ट्र की अमूल्य निधि हैं। सरोजिनी बहुत ही स्नेहमयी थीं। प्रकृति मैं उन्हें विशेष प्रेम था।
30 जनवरी 1948 ई. को गाँधी जी की मृत्यु पर जब देश भर में उदासी छायी थी, सरोजिनी नायुड़ ने अपनी श्रद्धाजलि में कहा, मेरे गुरु, मेरे नेता, मेरे पिता की आत्मा शान्त होकर विश्राम न करे बल्कि उनकी राख गतिमान हो उठे। चन्द्रन की राख उनकी अस्थियाँ इस प्रकार जीवन्त हो जायें और उत्साह से परिपूर्ण हो जायें कि समस्त भारत उनकी मृत्यु के बाद वास्तविक स्वतंत्रता पाकर पुनर्जीवित हो उठे।"
“मेरे पिता विश्राम मत करो, न हमें विश्राम करने दो। हमें अपना वचन पूरा करने की क्षमता दो। हमें अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की शक्ति दो। हम तुम्हारे उत्तराधिकारी हैं, सन्तान हैं, सेवक हैं तुम्हारे स्वप्न रक्षक हैं। भारत के भाग्य के निर्माता है, तुम्हारा जीवनकाल हम पर प्रभावी रहा है। अब तुम मृत्यु के बाद भी हम पर प्रभाव डालते रहो"।
मार्च 1949 को जब वे बीमार थी, तब उसकी सेवा कर रही नर्स से सरोजिनी नायड़ ने गीत सुनाने का आग्रह किया। नसे का मधुर गीत सुनते-सुनते वे चिरनिद्रा में सो गयीं। मार्च 1949 को भारत कोकिला सदा के लिए मौन हो गयीं।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें श्रद्धा॰जलि देते समय कहा था “सरोजिनी नायडू ने अपनी जिन्दगी एक कवयित्री के रूप में शुरू की थी। कागज और कलम से उन्होंने कुछ कवितायें ही लिखी थीं लेकिन उनकी पूरी जिन्दगी एक कविता, एक गीत थी सुन्दर मधुर कल्याणमयी”।