अक्कमहादेवी के वचन
भूख लगी तो गाँव में भिक्षान्न है,
प्यास लगी तो तालाब - कुएँ हैं,
शीत से बचने जीर्ण वस्त्र हैं,
सोने के लिए उजड़े मंदिर हैं,
हे चन्नमल्लिकार्जुन प्रभु,
मेरा आत्म-सखा तू ही है।
कन्नड भाषा की श्रेष्ठ महिला वचनकारों में अक्कमहादेवी का नाम आदर के साथ लिया जाता है। अक्कमहादेवी महान भक्तिन एवं रहस्यवादी कवयित्री थी। चन्नमल्लिकार्जुन को इन्होंने पति के रूप में स्वीकार करके अपनी साधना की। चन्नमल्लिकार्जुन उनके वचनों का अंकित नाम है। इनके सैकड़ों वचन हैं। हिंदी में जो स्थान मीरा का है वही स्थान कन्नड में अक्कमहादेवी का है। उनके प्रस्तुत वचनों द्वारा ईश्वर पर अनन्य भक्ति तथा ज्ञानियों के साथ रहने से होनेवाले लाभों का मार्मिक वर्णन मिलता है।
अक्कमहादेवी इन वचन में स्वयं को धन्य मानती हुई कहती हैं कि - प्रभु, आपके सामने कोई भी गरीब नहीं है। इसकी पुष्टि में वे कहती हैं यदि भूख लगी तो गाँव में अन्न देनेवाले हैं। प्यास लगती है तो पानी की कमी नहीं है क्योंकि इधर-उधर तालाब, कुएँ हैं। तुम्हारी कृपा से ठंड से बचने के लिए फटे वस्त्र मिले हैं। सोने के लिए उजड़े मंदिर हैं। हे प्रभु! तुम्हारा संग ही मेरे जीवन का सौभाग्य है। आपके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। तू ही मेरा प्रिय आत्म-सखा है।