अमर वाणी - कबीर के दोहे
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय ||
साई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।