बिहारी के दोहे
बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरुद बड़ाई पाइ।
कहत धतूरे सौ कनकु, गहनौ गढयौ न जाइ।।
कवि यहाँ पर यह कहना चाहता है कि कोई भी व्यक्ति किसी नाम से नहीं, गुण और कार्यों से पहचाना जाता है। यदि किसी भी वस्तु की असीम प्रशंसा करें तो और यदि उसमें उन गुणों का अभाव तो वह बड़ी नहीं हो सकती क्योंकि जैसे धतूरे को कनक भी कहते हैं परंतु उससे कोई आभूषण नहीं बनाया जा सकता।