बिहारी के दोहे
इही आस अटक्यौ रहतु, अलि गुलाब के मूल।
ह्रैहै फेरि वसंत ऋतु, इन ड्रारन वे फूल।।
कवि की उक्ति है कि विपरीत समय आने पर प्रिय जन अपने आश्रय स्थल को एकदम नहीं छोड़ते। वे अच्छे के लौटने के इंतज़ार में उसके साथ ही रहते हैं। दुर्दिन को खोकर गुलाब का प्रेमी भौंरा पुष्प-रहित गुलाब के पौधे की जड़ में अटका रहता है कि पुनः वसंतऋतु आएगी और इन ड़ालों में पूर्ववत् रंगीन पुष्प और पत्ते खिलेंगे।