सोमवार, 6 दिसंबर 2021

कोई नहीं पराया | श्री गोपाल दास ’नीरज‘ | GOPALDAS NEERAJ

कोई नहीं पराया 
श्री गोपाल दास ’नीरज‘ 

प्रस्तुत कविता मनुष्य-मनुष्य के बीच के बंटवारे, विभेद, जाति, लिंग, धर्म, रंग, वर्ण जनित विभिन्न तरह की संकीर्णताओं पर मन में सवाल खड़ा करता है। कवि प्रस्तुत कविता के जरिए धर्म और जाति से जुड़ी तमाम नफरत की दीवारों को गिराने का आह्वान करते हैं। कवि एकता का संदेश देते हुए कहते हैं कि उसका आराध्य मनुष्य मात्र है और उसके लिए देवालय हर इंसान का घर है। कवि स्पष्ट कहते हैं कि इस संसार में कोई पराया नहीं है सब ईश्वर की संतान हैं।

ईश्वर को लोग अपनी समझ और सन्दर्भ से अल्लाह, गॉड, राम, रहीम कहते हैं। जिस तरह से फूल, बाग की शोभा पहले है, डाल की शोभा बाद में है, वैसे ही मनुष्य जाति, धर्म, प्रान्त अथवा राष्ट्र की शोभा बाद में है, पहले विश्व की शोभा है। इस तरह से कवि “वसुधैव कुटुम्बकम” के सहज संदेश को कविता के जरिए सम्प्रेषित करते हैं।

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।

मैं न बँधा हूँ, देश-काल की जंग लगी जंजीर में,

मैं न खड़ा हूँ जात-पाँत की ऊँची-नीची भीड़ में,

मेरा धर्म न कुछ स्याही-शब्दों का सिर्फ गुलाम है,

मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,

मुझसे तुम न कहो मंदिर-मस्जिद पर सर मैं टेक दूँ,

मेरा तो आराध्य आदमी, देवालय हर द्वार है।

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।।


कहीं रहे कैसे भी मुझको प्यारा यह इंसान है,

मुझको अपनी मानवता पर बहुत-बहुत अभिमान है,

अरे नहीं देवत्व, मुझे तो भाता है मनुजत्व ही,

और छोड़कर प्यार नहीं स्वीकार, सकल अमरत्व भी,

मुझे सुनाओ तुम न स्वर्ग-सुख की सुकुमार कहानियाँ,

मेरी धरती सौ-सौ स्वर्गों से ज्यादा सुकुमार है।

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।।


मैं सिखलाता हूँ कि जिओ और जीने दो संसार को,

जितना ज्यादा बाँट सको तुम बाँटो अपने प्यार को,

हँसो इस तरह, हँसे तुम्हारे साथ दलित यह धूल भी,

चलो इस तरह कुचल न जाए पग से कोई फूल भी,

सुख न तुम्हारा सुख, केवल जग का भी इसमें भाग है,

फूल डाल का पीछे, पहले उपवन का शृंगार है। 

कोई नहीं पराया, मेरा घर सारा संसार है।।