साथी! दुःख से घबराता है?
गोपालदास 'नीरज'
इस कविता में कवि अपने साथी को दुःख से न डरने की सलाह देता है। न डरने से दु:ख भी सुख बन जाता है। मानव-जीवन में दुःख ज्यादा होता है। सुख बहुत कम। तो फिर दु:ख से डरने से, रोने-चीखने से दु:ख दूर नहीं होता। दुःख से लड़ना सही रास्ता है। दु:ख के बाद सुख आएगा। ज़रूर आएगा, क्योंकि दुःख सर्वदा नहीं रह सकता। दुःख भोगते हुए कोई मर जाय तो भी कोई डर नहीं। डरने से वह दुःख से बच तो नहीं सकता न! जीवन में दुःख होने के कारण हम सब कर्मतत्पर बने रहते हैं। दुःख पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं। जिस प्रकार जलती आग में जलने के कारण लोहे में कालिमा की जगह लालिमा आ जाती है, उसी प्रकार मानव-जीवन में दु:ख रूपी संघर्ष के कारण व्यक्तित्व का उत्कर्ष प्रतिपादित होता है। इसलिए कवि 'नीरज' का यह संदेश है कि दुःख को बुरी चीज़ न मानकर मुक्ति का मार्ग मानना चाहिए।
साथी! दुःख से घबराता है?
दुःख ही कठिन मुक्ति का बंधन,
दुःख ही प्रबल परीक्षा का क्षण,
दु:ख से हार गया जो मानव, वह क्या मानव कहलाता है?
साथी! दु:ख से घबराता है?
जीवन के लम्बे पथ पर जब
सुख दुःख चलते साथ-साथ तब
सुख पीछे रह जाया करता दुःख ही मंजिल तक जाता है।
साथी! दुःख से घबराता है?
दुःख जीवन में करता हलचल,
वह मन की दुर्बलता केवल,
दुःख को यदि मान न तू तो दुःख सुख बन जाता है।
साथी! दुःख से घबराता है
पथ में शूल बिछे तो क्या चल
पथ में आग जली तो क्या जल
जलती ज्वाला में जलकर ही लोहा लाल निकल आता है।
साथी! दु:ख से घबराता है?
धन्यवाद दो उसको जिसने
दिए तुझे दुःख के तो सपने,
एक समय है जब सुख ही क्या! दुःख भी साथ न दे पाता है।
साथी! दुःख से घबराता है?