रविवार, 19 दिसंबर 2021

जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार। | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KA DOHA |#shorts

तुलसी के दोहे


जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार।

संत-हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि विकार||

प्रस्तुत दोहे में तुलसीदास हंस पक्षी के साथ संत की तुलना करते हुए उसके स्वभाव का परिचय देते हैं। सृष्टिकर्ता ने इस संसार को जड़-चेतन और गुण-दोष मिलाकर बनाया है। अर्थात इस संसार में सार-निस्सार के रूप में अनेक गुण-दोष भरे हुए हैं, लेकिन हंस रूपी साधु लोग विकारों को छोड़कर अच्छे गुणों को अपनाते हैं।