गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

जय-जय भारत माता | मैथिलीशरण गुप्त | MAITHILI SHARAN GUPT

जय-जय भारत माता 
मैथिलीशरण गुप्त 


कवि इस कविता में भारत माता का गुणगान कर रहे हैं। कवि प्रार्थना कर रहे हैं कि इस देश के पावन आँगन में अंधेरा हटे और ज्ञान मिले। सब लोग मिलजुल कर भारत माता के यश की गाथा गाएँ।

जय-जय भारत माता।

ऊँचा हिया हिमालय तेरा

उसमें कितना स्नेह भरा

दिल में अपने आग दबाकर

रखता हमको हरा-भरा,

सौ-सौ सोतों से बह-बहकर

सौ-सौ सोतों से बह-बहकर

है पानी फूटा आता,

जय-जय भारत माता ।



कमल खिले तेरे पानी में

धरती पर हैं आम फले,

इस धानी आँचल में देखो

कितने सुंदर भाव पले,

भाई-भाई मिल रहें सदा ही

टूटे कभी न नाता,

जय-जय भारत माता।



तेरी लाल दिशा में ही माँ

चंद्र-सूर्य चिरकाल रहें,

तेरे पावन आँगन में

अंधकार हटे और ज्ञान मिले,

मिलजुल कर ही हम सब गाएँ

तेरे यश की गाथा, जय जय भारत माता।