बुधवार, 15 दिसंबर 2021

राहुल-जननी | मैथिली शरण गुप्त | MAITHILI SHARAN GUPT | अबला-जीवन, हाय! तुम्हारी यही कहानी | आँचल में है दूध और आँखों में पानी!

राहुल-जननी 

मैथिली शरण गुप्त 

इस पद ‘यशोधरा' खंडकाव्य के 'राहुल-जननी' शीर्षक से लिये गये हैं। इनमें गुप्तजी ने यशोधरा के माता रूप और पत्नीरूप का उद्घाटन किया है।

राजकुमार गौतम मानव-जीवन के शाश्वत सत्य की खोज में क्षणभंगुर संसार को त्याग देते हैं। पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को बिना जगाए और बिना कुछ बताए रात को ही निकल जाते हैं। सुबह यशोधरा को यह पता चलता है। वह बहुत दु:खी होती है। कुछ देर बाद राहुल जाग पड़ता है और रोने लगता है। यशोधरा उसे चुप कराती हुई कहती है - ‘रे अभागे! तू अब क्यों रो रहा है? चुप जा। उनके जाते वक्त अगर तू रोता तो वे मुझे सोती छोड़कर क्यों चले जाते? हम दोनों ने तो सोकर उन्हें खो दिया। अब रोने से क्या फायदा? राहुल को और समझाती हुई यशोधरा कहती है 'बेटे! मेरे भाग्य में रोना तो लिखा है। मैं रोऊँगी। तेरे सारे कष्ट मिटाऊँगी। तू क्यों रोता है? तू हँसा कर। हमारे जीवन में जो कुछ आएगा, उसे सहना ही पड़ेगा। हमारे सुख के दिन अवश्य लौटेंगे। अब मैं तुझे अपना दूध पिलाकर और सारी स्नेह-ममता देकर पालूँगी। तेरे पिता के लिए आँसू बहाऊँगी। तुम दोनों के प्रति मुझे समान न्याय करना होगा। इसलिए पतिव्रता नारी बनकर मैंने पति की तरह सारे सुख-भोग त्याग दिये हैं।

चुप रह, चुप रह, हाय अभागे!

रोता है अब, किसके आगे?

तुझे देख पाता वे रोता,

मुझे छोड़ जाते क्यों सोता?

अब क्या होगा? तब कुछ होता,

सोकर हम खोकर ही जागे!



चुप रह, चुप रह, हाय अभागे!

बेटा, मैं तो हूँ रोने को;

तेरे सारे मल धोने को

हँस तू, है सब कुछ होने को.

भाग्य आयेंगे फिर भी भागे,

चुप रह, चुप रह, हाय अभागे!

तुझको क्षीर पिलाकर लूँगी,

नयन-नीर ही उनको दूँगी,

पर क्या पक्षपातिनी हूँगी?

मैंने अपने सब रस त्यागे।

चुप रह, चुप रह, हाय अभागे।

गुप्तजी ने पति वियोगिनी यशोधरा की मानसिक दशा का चित्रण किया है। यशोधरा के जरिये भारतीय नारी-जीवन की सच्चाई उपस्थापित की है। यशोधरा अपने अतीत और वर्तमान की तुलना करती है और कहती है कि जो कल इस राजमहल की रानी बनी हुई थी, वह आज दासी भी कहाँ है? अर्थात् यशोधरा अपने आपको दासी से भी पराधीन मानती है। नारी जीवन की यही वास्तविकता है कि आँखों में आँसू भरकर भी दूसरों के लिए कर्त्तव्य का सम्पादन करती चले। अंत में यशोधरा कहती है - 'हे मेरे शिशु संसार राहुल! तू मेरा दूध पीकर पलता चल और हे मेरे प्रभु (पतिदेव)! तुम तो मेरे आँसू के पात्र हो! इसे तुम स्वीकार करो ।'

चेरी भी वह आज कहाँ, कल थी जो रानी;

दानी प्रभु ने दिया उसे क्यों मन यह मानी?

अबला-जीवन, हाय! तुम्हारी यही कहानी

आँचल में है दूध और आँखों में पानी!

मेरा शिशु-संसार वह

दूध पिये, परिपुष्ट हो।

पानी के ही पात्र तुम

प्रभो, रुष्ट या तुष्ट हो।