मातृभूमि - भगवतीचरण वर्मा
भगवतीचरण वर्मा के नाम को हिन्दी साहित्य में आदर के साथ लिया जाता है। प्रस्तुत कविता में कवि के देशप्रेम की झलक दिखायी देती है। वे मातृभूमि को प्रणाम करते हुए उसमें विद्यमान अपार वन-संपदा, खनिज संपत्ति का वर्णन करते हुए भारत के महान् विभूतियों का स्मरण करते हैं। इस कविता से भारत की महानता का परिचय प्राप्त होता है।
इस कविता के द्वारा कवि मातृभूमि की विशेषता का परिचय देते हुए छात्रों के मन में देशप्रेम का भाव जगाना चाहते हैं।
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
अमरों की जननी, तुमको शत-शत बार प्रणाम!
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
तेरे उर में शायित गांधी, वुद्ध और राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।
हरे-भरे हैं खेत सुहाने, फल-फूलों से युत वन-उपवन,
तेरे अंदर भरा हुआ है। खनिजों का कितना व्यापक धन।
मुक्त-हस्त तू बांट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।
एक हाथ में न्याय- पताका, शान-दीप दूसरे हाथ में,
जग का रूप बदल दे, हे माँ, कोटि-कोटि हम आज साथ में।
गूंज उठे जय-हिंद नाद से सकल नगर और ग्राम,
मातृ-भू शत-शत बार प्रणाम।