सारे जहाँ से अच्छा...
डॉ. इकबाल
कवि परिचय : डॉ. इकबाल (१८७३-१९३८)
इस गीत के रचयिता है उर्दू साहित्य के श्रेष्ठ कवि डॉ. इकबाल। आपका पूरा नाम महम्मद इकबाल नूरमहम्मद शेख है। आप लंदन के केंब्रिज विश्वविद्यालय के कला स्नातक थे और आपने वहीं से स्नातकोत्तर पदवी भी प्राप्त की। फिर विधि पदवी प्राप्त कर के बैरिस्टर बने। जर्मनी के म्यूनिक विश्वविद्यालय से आपने पीएच.डी. की उपाधि भी प्राप्त की। आपकी अप्रतिम काव्य-प्रतिभा के लिए आपको "अल्लामा" उपाधि से सम्मानित किया गया। आज आपको अल्लामा (महान् पंडित) डॉ. इकबाल के नाम से जाना जाता है।
इस प्यारी सी कविता में कवि ने अपने देश का, अर्थात् भारत बखान किया है। अमिट देशप्रेम का यह एक उत्कृष्ट अभिव्यंजन है। स्वर्ग भी ईर्ष्या करे ऐसा प्राकृतिक सौंदर्य यहां का है। यहां के लोग बहुधर्मीय होने भी, बड़े स्नेह के साथ रहते हैं।
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोसताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसिताँ हमारा।
गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा।
परबत वो सब से ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा।
गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दमसे रशके जिनाँ हमारा।
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोसताँ हमारा।