फिर महान बन - नरेन्द्र शर्मा
मनुष्य अमृत की सन्तान है। अपनी महानता के कारण वह सबसे श्रेष्ठ प्राणी के रूप में परिचित है। लेकिन आज वह अपना कर्त्तव्य भूल गया है। अपने कर्त्तव्य पर सचेतन होने के लिए कवि ने इस कविता में सलाह दी है। मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने के लिए, संसार को स्वर्ग बनाने के लिए यह कवि की चेतावनी है। कवि ने मनुष्य को फिर महान बनने की प्रेरणा दी है।
फिर महान बन, मनुष्य!
फिर महान बन।
मन मिला अपार प्रेम से भरा तुझे,
इसलिए कि प्यास जीव-मात्र की बुझे,
विश्व है तृषित, मनुष्य, अब न बन कृपण।
फिर महान बन।
शत्रु को न कर सके क्षमा प्रदान जो,
जीत क्यों उसे न हार के समान हो?
शूल क्यों न वक्ष पर बनें विजय-सुमन!
फिर महान बन।
दुष्ट हार मानते न दुष्ट नेम से,
पाप से घृणा महान है, न प्रेम से
दर्प-शक्ति पर सदैव गर्व कर न, मन।
फिर महान बन।