सूरदास के पद
हरि अपने आँगन कछु गावत।
तनक-तनक चरनन सौं नाचत, मनहिं मनहिं रिझावत।।
बाँह उचाइ काजरी-धौरी, गैयनि टेरि बुलावत।
कबहुँक बाबा नंद पुकारत, कबहुँक घर मैं आवत।।
माखन तनक आपने कर लै, तनक-बदन मैं नावत।
कबहुँ चितै प्रतिबिम्ब खंभ मैं, लौनी लिए खबावत।।
दुरि देखति जसुमति यह लीला, हरष आनंद बढ़ावत।
सूर स्याम के बाल-चरित ये, नित देखत मन भावत।।
बालक कृष्ण घर के आंगन में अकेले खेल रहे हैं? उनका यह खेल सबके मन को मोह लेता है । यह वर्णन बहुत ही हृदयग्राही है ।
भगवान कृष्ण अपने आप कुछ गा रहे हैं। वे गाते-गाते नन्हें चरणों से नाचते भी हैं और मन मगन भी हो रहे हैं। कभी वे हाथ उठाकर काली एवं सफेद गायों को बुलाते हैं, तो कभी नंद बाबा को पुकारते हैं। वे कभी घर के भीतर चले जाते हैं। घर में जाकर थोड़ा मक्खन हाथ में लेकर खाते हैं, और थोड़ा सा मुँह में लगा लेते हैं। कभी खंभे में अपना प्रतिबिंब देखकर उसे माखन खिलाते हैं। माता यशोदा दूर से ही खड़ी होकर यह लीला देख रही हैं और आनंदित हो रही हैं। सूरदास कह रहे हैं कि कन्हैया की यह बाललीला रोज-रोज देखने पर भी प्यारी लगती है। इससे मन तृप्त नहीं होता।