सूरदास के पद
बालक-कृष्ण की दधि-चोरी की बाललीला का वर्णन
“तेरो लाल मेरी माखन खायो।
दुपहर दिवस जानि घर सूनी, ढूंढि ढँढोरि जाय ही आयो।
खोल किवार सून मँदिर में, दूध, दही सब माखन खबायो।
छींकै काढ़ि खाट चढ़ मोहन, कछु खायो कछु लै ढरकायो।
लै दिन प्रति हानि होत गोरस की, यह ढोटा कौन रंग लायो।
सूरदास कहति ब्रजनारि, पूत अनोखो जायो।”
बालक-कृष्ण की दधि-चोरी की लीला का वर्णन है। ब्रजभूमि की एक ग्वालिन माता यशोदा से शिकायत करती है कि तेरे लड़के ने हमारा माखन खा लिया। दोपहर को घर सूना देखकर, खोज-खोजकर तेरा बेटा मेरे घर में घुस गया। उसने सूने घर का किवाड़ खोल दिया और घर में जो कुछ दूध-दही-माखन रखा था, सब के सब साथियों को खिला दिया। खाट पर चढ़कर उसने छींके पर रखे हुए दही को खा लिया और कुछ गिरा दिया। इस प्रकार हर दिन दूध, दही, माखन का नुकसान होता है। पता नहीं, यह लड़का कौन सा रंग या ढंग लाया है? तुमने तो एक अनोखे लड़के को जन्म दिया है।