प्रियतम
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला'
भगवान विष्णु किसान को अपना सबसे बड़ा भक्त मानते हैं। नारदजी को यह बात अच्छी नहीं लगती और वे नम्रतापूर्वक उसका विरोध करते हैं। भगवान् नारद जी की परीक्षा लेते हैं जिसमें वे सफल नहीं हो पाते। अन्त में नारदजी अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। निराला जी प्रस्तुत कविता के जरिए यह संदेश देना चाहते हैं कि कर्म ही ईश्वर है। इसलिए हर एक व्यक्ति को कर्म करना चाहिए। कर्म से निवृत्त रहकर सिर्फ भगवान का नाम लेने से कोई आगे नहीं बढ़ सकता या ईश्वरीय सान्निध्य प्राप्त नहीं कर सकता। कर्म करते हुए तथा सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए भी भगवान का नाम नहीं भूलना चाहिए।
एक दिन विष्णु के पास गये नारदजी,
पूछा, 'मृत्युलोक में वह कौन है पुण्यश्लोक
भक्त तुम्हारा प्रधान'?
विष्णुजी ने कहा
'एक सज्जन किसान है, प्राणों से प्रियतम।'
नारद कहा, ‘मैं उसकी परीक्षा लूँगा'।
हँसे विष्णु सुनकर यह, कहा कि 'ले सकते हो।'
नारदजी चल दिये, पहुँचे भक्त के यहाँ,
देखा, हल जोत कर आया वह दुपहर को;
दरवाजे पहुँचकर रामजी का नाम
स्नान-भोजन करके, फिर चला या काम पर।
शाम को आया दरवाजे, नाम लिया,
प्रातः काल चलते समय एक बार फिर उसने
मधुर नाम स्मरण किया।
'बस केवल तीन बार' नारद चकरा गये।
दिवा-रात्रि जपते हैं नाम ऋषि-मुनि लोग
किन्तु भगवान को किसान ही यह याद आया!
गये वे विष्णुलोक, बोले भगवान् से,
'देखो किसान को,
दिन भर में तीन बार नाम उसने लिया है।'
बोले विष्णु 'नारदजी'!
आवश्यक दूसरा काम एक आया है,
तुम्हें छोड़कर कोई और नहीं कर सकता।
साधारण विषय यह, बाद को विवाद होगा,
तब तक यह आवश्यक कार्य पूरा कीजिये,
तैल-पूर्ण पात्र यह लेकर,
प्रदक्षिणा कर आइए भूमण्डल की
ध्यान रहे सविशेष,
एक बूँद भी इससे तेल न गिरने पाए।'
लेकर चले नारदजी, आज्ञा पर धृतलक्ष्य।
एक बूँद तेल इस पात्र से गिरे नहीं।
योगिराज जल्द ही
विश्व-पर्यटन करके लौटे वैकुण्ठ को।
तेल एक बूँद भी उस पात्र से गिरा नहीं।
उल्लास मन में भरा था यह सोचकर,
तेल का रहस्य एक अवगत होगा नया।
नारद को देखकर विष्णु भगवान् ने
बैठाया स्नेह से कहा,
‘बतलाओ पात्र लेकर जाते समय कितनी बार
नाम इष्ट का लिया?'
'एक बार भी नहीं,
शंकित हृदय से कहा नारद ने विष्णु से,
'काम तुम्हारा ही था,
ध्यान उसीसे लगा, नाम फिर क्या लेता और'?
विष्णु ने कहा, 'नारद'!
उस किसान का भी काम मेरा दिया हुआ है,
उत्तरदायित्व कई लदे हैं एक साथ,
सबको निभाता और काम करता हुआ,
नाम भी वह लेता है, इसी से है प्रियतम।
नारद लज्जित हुए, कहा, 'यह सत्य है।'