सरदार वल्लभभाई पटेल
मुंबई की एक सभा में सिंह की तरह गरजते हुए एक देशभक्त ने कहा था कि, "अंग्रेज भारत को जितनी जल्दी आजाद कर दें, उतना ही अच्छा। यदि देरी की गई, तो यह उन्हीं के लिए खराब बात होगी।" यह सिंह गर्जना करने वाले व्यक्ति थे लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल।
वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के पेटलाद तालुके के करमसद गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम झबेर भाई पटेल और माता का नाम लाड़बाई था। झबेर भाई किसान थे।
सरदार पटेल के बचपन की एक घटना है। उनकी आँख के पास एक फोड़ा निकल आया। बहुत दवा दी गई पर ठीक न हुआ। किसी व्यक्ति ने सलाह दी कि लोहे की सलाख खूब गर्म करके फोड़े में धँसा दी जाए तो फोड़ा फूट जाएगा। सलाख गर्म की गई किंतु किसी में यह साहस न होता था कि गरम सलाख को फोड़े में धँसाए। भय यह था कि कहीं आँख में न लगे। इस पर बालक वल्लभ ने कहा, "देखते क्या हो, सलाख ठंडी हो रही है।" और फिर स्वयं ही उसे लेकर फोड़े में धँसा दिया। बालक के इस साहस को देखकर उपस्थित लोगों ने कहा कि यह बालक आगे चलकर बहुत ही साहसी होगा। बाईस वर्ष की उम्र में उन्होंने नाडियाद स्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की। फिर मुख्तारी परीक्षा पास करके गोधरा में मुख्तारी करने लगे।
कुछ समय बाद वल्लभभाई वकालत पढ़ने के लिए विदेश चले गए। जहाँ वह रहते थे, वहाँ से पुस्तकालय ग्यारह मील दूर था। वह नित्य प्रति सवेरे उठकर उस पुस्तकालय में जाते और शाम को पुस्तकालय के बंद होने पर ही वहाँ से उठते। अपने इसी अध्ययन के फलस्वरूप वह उस साल वकालत की परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। इस पर उन्हें पचास पौंड का पुरस्कार भी मिला।
विदेश से लौटकर वह अहमदाबाद में वकालत करने लगे और थोड़े ही समय में अत्यंत प्रसिद्ध हो गए। इसी समय वह गांधी जी के संपर्क में आए। उन्होंने वकालत छोड़ दी और पूरी तरह तन-मन-धन से देश की सेवा में जुट गए।
सर्वप्रथम वल्लभभाई ने गोधरा में हुए प्रांतीय राजनीतिक सम्मेलन में गुजरात की बेगार-प्रथा को समाप्त करने के लिए एक प्रस्ताव पास कराया। इस सम्मेलन में पहली बार भारतीय भाषाओं का प्रयोग किया गया। वल्लभभाई के प्रयासों के फलस्वरूप गैरकानूनी बेगार प्रथा बंद हो गई। वल्लभभाई ने नागपुर के झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व भी किया। इस सत्याग्रह के कारण अंग्रेज सरकार को समझौते के लिए झुकना पड़ा। इस सत्याग्रह के बाद उनका नाम सारे भारत में फैल गया।
सन् 1927 में बारदोली का प्रसिद्ध सत्याग्रह शुरू हुआ। किसानों पर सरकार ने लगान की दर बढ़ा दी। किसान वल्लभभाई के पास गए। इस तरह उनके नेतृत्व में आंदोलन प्रारंभ हो गया। उन्होंने गाँव वालों को इस तरह संगठित किया कि लगान मिलना तो दूर, गाँवों में अंग्रेज अफसरों को भोजन, रिहाइश और सवारी तक मिलना मुश्किल हो गया।
इस में बहुत अत्याचार किए। गरीब किसानों के घरों के ताले फौज के जरिए तुड़वाकर, सामान जब्त करके मालगुजारी वसूल करने की कोशिश की गई पर सरकारी खजाने में एक कौड़ी भी जमा न हुई। हजारों लोग जेल गए। उनकी गाय, भैंस तक जब्त कर ली गई पर उन्होंने सिर न झुकाया । यहाँ तक कि जब्त किए गए सामान को उठाने वाला कोई मजदूर नहीं मिलता था और न जब्त की गई जायदाद की नीलामी में बोली लगाने वाला कोई आदमी। महीनों तक यही हाल रहा। अंत में सरकार को झुकना पड़ा।
सन् 1929 में लाहौर में पूर्ण स्वराज्य की माँग की गई। अंग्रेज सरकार ने इसे नहीं माना। गांधी जी ने फिर से सत्याग्रह का नारा दिया और 12 मार्च को प्रसिद्ध डांडी यात्रा शुरू कर दी। इसके बाद 6 अप्रैल को नमक कानून तोड़कर उन्होंने नमक सत्याग्रह आरंभ किया। सरदार पटेल ने इस सत्याग्रह में भाग लिया। वह गिरफ्तार कर लिए गए और उनको तीन माह की कैद और 500 रु0 जुर्माने की सजा दी गई। सरदार पटेल ने जुर्माना स्वीकार न कर उसके स्थान पर तीन सप्ताह और जेल में ही काटे ।
सन् 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया। अंग्रेज सरकार ने अपनी ओर से भारत के इस युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। इसका सर्वत्र विरोध हुआ। सरदार पटेल 17 नवम्बर 1940 को व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार हुए, पर स्वास्थ्य खराब होने के कारण नौ महीने बाद रिहा कर दिए गए। 'भारत छोड़ो' आंदोलन के सिलसिले में अगस्त 1942 में वह फिर गिरफ्तार किए गए। अन्य सभी नेताओं के साथ 15 जून 1945 को वह भी छोड़े गए।
15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। सरदार पटेल ने गृहमंत्री का कार्यभार सँभाला। स्वतंत्रता के बाद देश के सामने कई समस्याएँ आईं। सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से इन सभी पर काबू पा लिया।
जिस कार्य के लिए सरदार पटेल को सदैव याद किया जाएगा, वह था देशी रियासतों का एकीकरण । जब अंग्रेज भारत छोड़कर जाने लगे तो देशी रियासतों को यह आजादी दे गए कि वह चाहें तो आजाद रह सकते हैं, चाहें तो भारत या पाकिस्तान में मिल जाएँ। सरदार पटेल ने इस विकट समस्या को अपनी दृढ़ता और सूझबूझ हल कर दिखाया और लगभग 600 रियासतों को भारतीय संघ का अटूट अंग बनाकर भारत के मानचित्र को नवीन स्वरूप प्रदान किया। संपूर्ण भारत में एकता स्थापित हो गई, इसलिए उन्हें भारत का लौहपुरुष कहा जाता है।
सरदार पटेल स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् केवल ढाई वर्ष जीवित रहे। वह अंतिम समय तक कठिन परिश्रम करते रहे। 15 दिसम्बर 1950 को दिल के दौरे से मुंबई (बंबई) में उनका निधन हो गया। भारत निर्माण में सरदार वल्लभ भाई के अविस्मरणीय योगदान के कारण वर्ष 1991 में भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया। सरदार पटेल की सफलता का मूल मंत्र था कर्तव्यपालन और कठोर अनुशासन। अपने पचहत्तरवें जन्म दिवस पर उन्होंने राष्ट्र को संदेश दिया था- "उत्पादन बढ़ाओ, खर्च घटाओ और अपव्यय बिल्कुल न करो।"