वृक्षप्रेमी तिम्मक्का
इस पाठ में 'सालुमरदा तिम्मक्का' के अमूल्य पर्यावरण प्रेम का परिचय दिया गया है, जिससे बच्चे पर्यावरण की रक्षा करने में अपना निष्ठापूर्ण सहयोग दे सकते हैं।
सालुमरदा तिम्मक्का का नाम आज कर्नाटक के कोने-कोने में व्याप्त है। कर्नाटक सरकार ने उन्हें इतने सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया है कि समाज-सेवा के क्षेत्र में यह महिला एक मिसाल बन गयी है। इस आदर्श महिला के जीवन के बारे में हम कितना जानते हैं ! आइए, ग्रामीण प्रदेश के गरीब परिवार में जन्म लेनेवाली एक अनपढ़ महिला के उदात्त व्यक्तित्व एवं कार्य का परिचय पावें।
तिम्मक्का का जन्म तुमकूरु जिला, गुब्बी तालुका में से गाँव कक्केनहल्ली में हुआ। उनके पिता चिक्करगय्या और माता विजयम्मा थे। तिम्मक्का इनकी छ: संतानों में से एक एक छोटे थी। तिम्मक्का के मां-बाप मेहनत-मजदूरी करते हुए अपना पेट पालते थे।
तिम्मरका के पति का नाम बिक्कला चिक्कय्या था। वे भी अनपढ़ थे। रोज़ दूसरों के खेत में पसीना बहाकर काम किया करते थे। इस दंपति को एक-एक कौर के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। कमाई भी बहुत कम थी। यदि एक दिन मजदूरी नहीं करते तो उन्हें भूखे रहना पड़ता था।
तिम्मक्का निस्संतान थीं। पति-पत्नी बच्चों के लिए तरस जाते थे। अंत में उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया। दत्तक पुत्र के सगे मां बाप को लोगों की कटु निंदा सुननी पड़ी। उन्होंने अपने बेटे को वापस ले लिया। अपना दत्तक पुत्र खोकर तिम्मक्का बहुत दुःखी हुई। लेकिन सन् 2005 में उन्होंने बल्लूरु के उमेश बी.एन. को पुत्र के रूप में अपनाया जो अब उनकी देखभाल कर रहे हैं।
तिम्मक्का और चिक्कय्या दोनों ने निश्चय किया कि अपने आप को किसी धर्म-कार्य में लगा लें। उनके गाँव के पास ही श्रीरंगस्वामी का मंदिर था, जहां हर साल मेला लगता था। वहाँ आनेवाले जानवरों के लिए पीने के पानी का इंतज़ाम किया।
तिम्मरका ने रास्ते के दोनों ओर पेड़ लगाने, सींचने, बढ़ाने की बात सोची। यह काम आसान नहीं था। फिर भी उन्होंने हुलिकल और कुदूर के बीच के चार कि.मी. के रास्ते के दोनों ओर के डाल लगाये। उन पेड़ा को भेड़-बकरियों से रक्षा करने की व्यवस्था की।
पहले साल दस, दूसरे साल पंद्रह और तीसरे साल में नब्बे पेड़ लगाये। उन्हें अपने बच्चों की तरह प्रेम से पाला-पोसा। यह काम निरंतर दस सालों तक चलता रहा। पेड़ राहगीरों को छाया देने के साथ-साथ, पक्षियों के आश्रयधाम भी बन गए।
तिम्मक्का के जीवन में मुसीबत की घड़ियां शुरू हुईं। तिम्मक्का के पति की तबीयत खराब हुई। बुरी हालत में चिक्कय्या चल बसे। तिम्मक्का अब अकेली पड़ गयीं। फिर भी हिम्मत न हारी और अपने कार्य में तल्लीन रहीं।
तिम्मक्का ने अब तक 8000 से अधिक पेड़ लगाये हैं। अब हमारी कर्नाटक सरकार ने उन पेड़ों की रक्षा करने का बीड़ा उठाया है। तिम्मक्का को उनकी निष्ठा, त्याग तथा सेवा के लिए नाडोज पुरस्कार, राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र, वीर चक्र, कर्नाटक कल्पवल्ली, गाड़ फ्री फिलिप्स धैर्य पुरस्कार, विशालाक्षी पुरस्कार, डॉ.कारंत पुरस्कार, कर्नाटक सरकार के महिला और शिशु कल्याण विभाग के द्वारा सम्मान पत्र आदि अनेकानेक पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है। तिम्मक्का जी सन् 2012 में संपन्न प्रथम राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन की अध्यक्षा रही।
पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ तिम्मक्का अन्य सामाजिक कार्य भी कर रही हैं। अपने पति की याद में उन्होंने हुलिकल ग्राम में गरीबों की निःशुल्क चिकित्सा के लिए एक अस्पताल के निर्माण कराने का संकल्प किया है। जो भी धनराशि पुरस्कार के रूप में तिम्मनका को मिली है, उसे वह सामाजिक कार्य तथा दीन-दुखियों की सेवा के लिए अर्पित कर रही हैं।
अपने जीवन में दर्द और तकलीफ उठाने के बावजूद सार्थक कार्य करनेवाली तिम्मक्का का व्यक्तित्व सबके लिए आदर्श है। सरकारी संसाधनों के अभाव में भी कोई एक व्यक्ति केवल अपनी निष्ठा व श्रद्धा की बदौलत किस तरह सामाजिक कार्य के लिए स्वयं को समर्पित कर सकता है, इसके लिए एक अत्युत्तम निदर्शन हैं तिम्मक्का।
तिम्मक्का ने अपने जीवन काल में बहुत सारे पेड़ लगाकर उनकी देख-रेख की है। कतारों में शोभायमान बरगद के पेड़ लगाने के कारण वे सालुमरदा तिम्मक्का नाम से जानी जाती हैं।