साहित्य अमृत | रहीम के दोहे | AP BOARD OF INTERMEDIATE |HINDI | FRIST YEAR |PART-2 | | RAHIM KE DOHE | नीतिपरक उपदेश
रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।इनके नीतिपरक दोहे में दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।
रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली आदि। ये सभी कृतियाँ 'रहीम ग्रंथावली' में समाहित हैं।
रहीम के दोहे
बिगरी बात बनै नहिं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरै, जुरै गांठ पर जाय।।
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर गयी, जूती खात कपाल।।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवारि ।।
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।
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