बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE | स्पर्श | भाग-2 | कक्षा-10 | द्वितीय भाषा | पद्य-खंड | पाठ-3 | CBSE | HINDI | CALSS X | NCERT | #shorts | #CBSE | #HINDI | #india
बिहारी (1595-1663)
बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। बिहारी रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। उनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था। 1663 में इनका देहावसान हुआ। बिहारी की एक ही रचना 'सतसई' उपलब्ध है जिसमें उनके लगभग 700 दोहे संगृहीत हैं।
लोक ज्ञान और शास्त्र ज्ञान के साथ ही बिहारी का काव्य ज्ञान भी अच्छा था। रीति का उन्हें भरपूर ज्ञान था। इन्होंने अधिक वर्ण्य सामग्री शृंगार से ली है। इनकी कविता शृंगार रस की है। बिहारी की भाषा शुद्ध ब्रज है पर है वह साहित्यिक। इनकी भाषा में पूर्वी प्रयोग भी मिलते हैं। बुंदेलखंड में अधिक दिनों तक रहने के कारण बुंदेलखंडी शब्दों का प्रयोग मिलना भी स्वाभाविक है।
बिहारी के दोहे
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनें गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यो प्रभात।।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।।
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहै नटि जाइ।।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।
प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आई।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराई।।
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचे नाचे वृथा, साँचै राँचे रामु॥
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