साहित्य भारती | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | FIRST YEAR HINDI| CHAPTER 01 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india
जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी
पिता का नाम : नीरू
माता का नाम : नीमा
पत्नी का नाम : लोई बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी
मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश
हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।
भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।
कबीर के दोहे
सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपकार।
लोचन अनँत उघारिया, अनंत दिखावन हार।।
सोना सज्जन साधु जन टूटि जुरै सौ बार।
दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै, साँच है, ताके हिरदै आप।।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
यह आपा तू डारि दे, दया करै सब कोय ॥
बोली तो अनमोल है, जो कोइ जानै बोल।
हिये तराजू तोलि के, तब मुख बाहर खोल।।
कबीर गर्व न कीजिये, काल गहे कर केस।
ना जानौ कित मारि है, क्या घर क्या परदेस॥
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा वहाँ आप॥
रात गंवाई सोय कर, दिवस गंवायो खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥
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