हिन्दी सुमन | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 19 | FIRST LANGUAGE |कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE | #shorts | #hindi | #india
कबीर के दोहे
हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।
भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।
कबीर के दोहे
ज्यों तिल माँही तेल है, ज्यों चकमक में आगि।
तेरा साई तुज्झ में, जागि सकें तो जागि।।
जिनि ढूँढा तिनि पाइयाँ, गहरे पानी पैठि।
हौ बौरी डूबन डूरी, रही किनारे बैठि।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय
सार सार को गहि रहे, थोथा देई उडाय।।
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