हिन्दी वल्लरी | KSEEB | CLASS 10 | CHAPTER 7 | THIRD LANGUAGE | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE | #shorts | #hindi | #india
तुलसी के दोहे
भक्तिकाल के प्रसिद्ध राम भक्त कवि तुलसीदास था। तुलसीवास का जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन् 1532 में हुआ था। रामभक्ति परंपरा में तुलसी अंतुलनीय हैं। रामचरितमानस कवि की अनन्य रामभक्ति और उनके सृजनात्मक कौशल का मनोरम उदाहरण है। उनके राम मानवीय मर्यादाओं और आदर्शों के प्रतीक हैं जिनके माध्यम से तुलसी ने नीति, स्नेह, शील, विनय, त्याग जैसे उदात्त आदर्शों को प्रतिष्ठित किया। रामचरितमानस के अलावा कवितावली, गीतावली, दोहावली, कृष्णगीतावली, विनयपत्रिका आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ। हैं। अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। सन् 1623 में काशी में उनका देहावसान हुआ।
तुलसी ने रामचरितमानस की रचना अवधी में और विनयपत्रिका तथा कवितावली की रचना ब्रजभाषा में की। | उस समय प्रचलित सभी काव्य रूपों को तुलसी की रचनाओं में देखा जा सकता है। रामचरितमानस का मुख्य छंद चौपाई है तथा बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छंद पिरोए गए हैं। विनयपत्रिका की रचना गेय पदों में हुई है। कवितावली में सवैया और कवित्त छंद की छटा देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्यों का उत्कृष्ट रूप है।
मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक।।
जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार।
संत-हंस गुण गहहि पय, परिहरि वारि विकार।।
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छाडिये, जब लग घट में प्राण।।
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसो एक।।
राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी 'भीतर वाहिरी, जो चाहसी उजियार।।