हिन्दी वल्लरी | KSEEB | CLASS 9 | CHAPTER 17 | THIRD LANGUAGE | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहीम के दोहे
रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।
इनके नीतिपरक दोहे में दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।
रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली आदि। ये सभी कृतियाँ 'रहीम ग्रंथावली' में समाहित हैं।
रहीम के दोहे
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान।।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवारि।।
बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल।
‘रहिमन' हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल।।
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