मंगलवार, 11 जनवरी 2022

क्षितिज |KSHITIJ HINIDI TEXT BOOK | भाग-1 | CBSE | CLASS 9 | CHAPTER 9 | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI | NCERT | कबीर | KABIR

क्षितिज |KSHITIJ HINIDI TEXT BOOK | भाग-1 | CBSE | CLASS 9 | CHAPTER 9 | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI | NCERT | कबीर | KABIR

कबीर की साखियाँ

जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी

पिता का नाम : नीरू 

 माता का नाम : नीमा

पत्नी का नाम : लोई बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)

मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी

मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

हिंदी साहित्य के भक्ति काल के ज्ञानमार्ग के प्रमुख संत कवि कबीरदास हैं। कबीर ने शिक्षा नहीं पाई परंतु सत्संग, पर्यटन तथा अनुभव से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था। कबीर अत्यंत उदार, निर्भय तथा सद्गृहस्थ संत थे। राम और रहीम की एकता में विश्वास रखने वाले कबीर ने ईश्वर के नाम पर चलने वाले हर तरह के पाखंड, भेदभाव और कर्मकांड का खंडन किया। उन्होंने अपने काव्य में धार्मिक और सामाजिक भेदभाव से मुक्त मनुष्य की कल्पना की। ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, गुरुभक्ति, सत्संग और साधु-महिमा के साथ आत्मबोध और जगतबोध की अभिव्यक्ति उनके काव्य में हुई है। जनभाषा के निकट होने के कारण उनकी काव्यभाषा में दार्शनिक चिंतन को सरल ढंग से व्यक्त करने की ताकत है। कबीर कहते हैं कि ज्ञान की सहायता से मनुष्य अपनी दुर्बलताओं से मुक्त होता है।

भक्तिकालीन निर्गुण संत परंपरा में कबीर की रचनाएँ मुख्यत: कबीर ग्रंथावली में संगृहीत हैं, किंतु कबीर पंथ में उनकी रचनाओं का संग्रह बीजक ही प्रामाणिक माना जाता है।

(1)

मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।

मुकताफल मुकता चुगैं, अब उड़ि अनत न जाहिं।1।

(2)

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।

प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।।

(3)

हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।

स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।1

(4)

पखापखी के कारनै, सब जग रहा भुलान।

निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान।।

(5)

हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।

कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकट न जाइ||

(6)

काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम||

(7)

ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।

सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ।।

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