निर्मल वर्मा
(सन् 1929-2005)
निर्मल वर्मा का जन्म शिमला (हिमाचल प्रदेश) में - दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कालेज से इतिहास में हुआ। उन्होंने एम.ए. किया और अध्यापन कार्य करने लगे। चेकोस्लोवाकिया के प्राच्य विद्या संस्थान प्राग के निमंत्रण पर सन् 1959 में वहाँ गए और चेक उपन्यासों तथा कहानियों का हिंदी अनुवाद किया।
निर्मल वर्मा को हिंदी के समान ही अंग्रेज़ी पर भी अधिकार प्राप्त था। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया तथा हिंदुस्तान टाइम्स के लिए यूरोप की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समस्याओं पर अनेक लेख और रिपोर्ताज लिखे हैं जो उनके निबंध संग्रहों में संकलित हैं। सन् 1970 में वे भारत लौट आए और स्वतंत्र लेखन करने लगे।
निर्मल वर्मा का मुख्य योगदान हिंदी कथा-साहित्य के क्षेत्र में है। वे नयी कहानी आंदोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कव्वे और काला पानी, बीच बहस में, सूखा तथा अन्य कहानियाँ आदि कहानी-संग्रह और वे दिन, लाल टीन की छत, एक चिथड़ा सुख तथा अंतिम अरण्य उपन्यास इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। रात का रिपोर्टर जिस पर सीरियल तैयार किया गया है, उनका उपन्यास है। हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उठती धुन में उनके यात्रा संस्मरण संकलित हैं। शब्द और स्मृति तथा कला का जोखिम और ढलान से उतरते हुए उनके निबंध-संग्रह हैं, जिनमें विविध विषयों का विवेचन मिलता है। सन् 1985 में कव्वे और काला पानी पर उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अतिरिक्त उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।
निर्मल वर्मा की भाषा-शैली में एक ऐसी अनोखी कसावट है, जो विचार-सूत्र की गहनता को विविध उद्धरणों से रोचक बनाती हुई विषय का विस्तार करती है। शब्दचयन में जटिलता न होते हुए भी उनकी वाक्य-रचना में मिश्र और संयुक्त वाक्यों की प्रधानता है। स्थान-स्थान पर उन्होंने उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा-शैली में अनेक नवीन प्रयोगों की झलक मिलती है।