मंगलवार, 4 जनवरी 2022

साहित्य सेतु | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | SECOND YEAR HINDI | CHAPTER 01 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

साहित्य सेतु | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE | TELANGANA STATE BOARD OF INTERMEDIATE EDUCATION | SECOND YEAR HINDI | CHAPTER 01 | प्राचीन काव्य | #shorts | #hindi | #india

रहीम के दोहे

रहीम का जन्म लाहौर में सन् 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे।

इनके नीतिपरक दोहे में दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।

रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली आदि। ये सभी कृतियाँ 'रहीम ग्रंथावली' में समाहित हैं।

रहीम के दोहे

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरै, जुरै गांठ पर जाय।।

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती मानुस चून।।

समय पाय फल होत है, समय पाइ झरिं जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछतात।।

टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिर फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलै हैं लोग सब, बाटी न लें हैं कोय॥

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबै ना दबै, जानत सकल जहान॥

रहिमन विद्या, बुद्धि नहिं, नहीं धरम जस दान।
भू पर जनम वृथा धरै, पशु बिन पूँछ विषान॥

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