शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

हरिशंकर परसाई | HARISHANKAR PARSAI | INDIAN HINDI POET | साहित्यकार का जीवन परिचय

हरिशंकर परसाई


1922 1995

हरिशंकर परसाई का जन्म जमानी गाँव, जिला होशंगाबाद,मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया। कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात सन् 1947 से वे स्वतंत्र लेखन में जुट गए। उन्होंने जबलपुर से वसुधा नामक साहित्यिक पत्रिका निकाली। परसाई ने व्यंग्य विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान की। उनके व्यंग्य-लेखों की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे समाज में आई विसंगतियों, विडंबनाओं पर करारी चोट करते हुए चिंतन और कर्म की प्रेरणा देते हैं। उनके व्यंग्य गुदगुदाते हुए पाठक को झकझोर देने में सक्षम हैं।

भाषा-प्रयोग में परसाई को असाधारण कुशलता प्राप्त है। वे प्राय: बोलचाल के शब्दों का प्रयोग सतर्कता से करते हैं। कौन सा शब्द कब और कैसा प्रभाव पैदा करेगा इसे वे बखूबी जानते थे।

परसाई ने दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना की है, जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी-संग्रह); रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास); तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का ज़माना, सदाचार की तावीज़, शिकायत मुझे भी है, और अंत में (निबंध-संग्रह); वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर (व्यंग्य-लेख संग्रह)। उनका समग्र साहित्य परसाई रचनावली के रूप में छह भागों में प्रकाशित है।