महादेवी वर्मा
(सन् 1907-1987)
महादेवी वर्मा का जन्म फ़र्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह हो गया। प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत में एम.ए. किया। तत्पश्चात् उनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में हो गई, जहाँ वे लंबे समय तक प्राचार्य के पद पर कार्य करती रहीं। उनके जीवन और चिंतन पर स्वाधीनता आंदोलन और गांधी जी के विचारों के साथ-साथ गौतम बुद्ध के दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा है। महादेवी जी भारतीय समाज और हिंदी साहित्य में स्त्रियों को उचित स्थान दिलाने के लिए विचार और व्यवहार के स्तर पर जीवनभर प्रयत्नशील रहीं। उन्होंने कुछ वर्षों तक चाँद नाम की पत्रिका का संपादन भी किया था, जिसके संपादकीय लेखों के माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज में स्त्रियों की पराधीनता के यथार्थ और स्वाधीनता की आकांक्षा का विवेचन किया है।
महादेवी वर्मा के काव्य में जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा का बोध भी। दूसरे छायावादी कवियों की तरह उनके गीतों में प्रकृति-सौंदर्य के कई रूप मिलते हैं। महादेवी वर्मा के प्रगीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनि और लोकगीतों की अनुगूंज है, इसके साथ ही उनके गीत आधुनिक बौद्धिक मानस के द्वंद्वों को भी अभिव्यक्त करते हैं।
महादेवी वर्मा के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारण अत्यंत आकर्षक हैं। लाक्षणिकता, चित्रमयता और रहस्याभास उनके गीतों की विशेषता है। महादेवी जी ने नए बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगीत की अभिव्यक्ति शक्ति का नया विकास किया। उनकी काव्य-भाषा प्रायः तत्सम शब्दों से निर्मित है। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। यामा के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं- नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा और दीपशिखा। कविता के अतिरिक्त उन्होंने सशक्त गद्य भी रचा है, जिसमें रेखाचित्र तथा संस्मरण प्रमुख हैं। पथ के साथी, अतीत के चलचित्र तथा स्मृति की रेखाएँ उनकी कलात्मक गद्य रचनाएँ हैं। श्रृंखला की कड़ियाँ में महादेवी वर्मा ने भारतीय समाज में स्त्री जीवन के अतीत, वर्तमान और भविष्य का मूल्यांकन किया है।