ओमप्रकाश वाल्मीकि
(सन् 1950-2013)
ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्म बरला, जिला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े।
वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। वे देहरादून स्थित आप्टो इलैक्ट्रॉनिक्स फ़ैक्टरी (ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्रीज़, भारत सरकार) में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे। बाद में सेवानिवृत्त हो गए। सन् 2013 में अस्वस्थ हो गए और दिल्ली में ही उन्होंने अंतिम साँस ली।
हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि दलित ही दलित की पीड़ा को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है। उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रुचि है। अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें सन् 1993 में डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सन् 1995 में परिवेश सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। जूठन के अंग्रेजी संस्करण को न्यू इंडिया बुक पुरस्कार, 2004 प्रदान किया गया।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - सदियों का संताप, बस! बहुत हो चुका (कविता संग्रह); सलाम, घुसपैठिये (कहानी संग्रह), दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र तथा जूठन (आत्मकथा)|