पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'
(सन् 1900-1967)
पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' का जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के चुनार नामक ग्राम में हुआ था। परिवार में अभावों के कारण उन्हें व्यवस्थित शिक्षा पाने का सुयोग नहीं मिला। मगर अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और साधना से उन्होंने अपने समय के अग्रणी गद्य शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाई। अपने तेवर और शैली के कारण उग्र जी अपने समय के चर्चित लेखक रहे। अपने कवि मित्र निराला की तरह उन्हें भी पुरातनपंथियों के कठोर विरोध का सामना करना पड़ा।
पत्रकारिता से उग्र जी का सक्रिय संबंध था। वे आज, विश्वमित्र, स्वदेश, वीणा, स्वराज्य और विक्रम के संपादक रहे, लेकिन मतवाला-मंडल के प्रमुख सदस्य के रूप में उनकी विशेष पहचान है।
उग्र जी ने शताधिक कहानियाँ लिखी हैं जो पंजाब की महारानी, रेशमी, पोली इमारत, चित्र-विचित्र, कंचन-सी काया, काल कोठरी, ऐसी होली खेलो लाल, कला का पुरस्कार आदि में संकलित हैं। उन्होंने चंद हसीनों के खतूत, बुधुआ की बेटी, दिल्ली का दलाल, मनुष्यानंद आदि अनेक यथार्थवादी उपन्यासों की रचना भी की। कहानी और उपन्यास के अतिरिक्त आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र आदि के क्षेत्रों में भी उनकी लेखनी गतिशील रही। उनकी आत्मकथा अपनी खबर साहित्य जगत बहुचर्चित है। उन्होंने महात्मा ईसा (नाटक) और ध्रुवधारण (खंडकाव्य) की भी रचना की है।
उग्र जी की कहानियों की भाषा सरल, अलंकृत और व्यावहारिक है, जिसमें उर्दू के व्यावहारिक शब्द अनायास ही आ जाते हैं। भावों को मूर्तिमंत करने इनकी भाषा अत्यधिक सजीव और सशक्त कही जा सकती है, पाठक के मर्मस्थल पर सीधा प्रहार करती है। भावों के अनुरूप इनकी शैली भी व्यंग्यपरक है। इनकी कहानियों में उसकी माँ, शाप, कला का पुरस्कार, जल्लाद और देशभक्त आदि विशेष प्रसिद्ध हैं।