पार नज़र के
जयंत विष्णु नार्लीकर
(मराठी से अनुवाद-रेखा देशपांडे)
वह एक सुरंगनुमा रास्ता था। आम आदमी के लिए इस रास्ते से होते हुए जाने की मनाही थी...लेकिन छोटू ने एक दिन अपने पापा का सिक्योरिटी पास लिया और जा पहुँचा सुरंग में... फिर क्या हुआ?
"छोटू! कितनी बार कहा है तुमसे कि उस तरफ़ मत जाया करो!"
"फिर पापा क्यों जाते हैं उस तरफ़ रोज़-रोज़?" "पापा को काम पर जाना होता है।"
रोजाना यही वार्तालाप हुआ करता था छोटू की माँ और छोटू के बीच उस तरफ एक सुरंगनुमा रास्ता था और छोटू के पापा इसी सुरंग से होते हुए काम पर जाया करते थे। आम आदमी के लिए इस रास्ते से जाने की मनाही थी। चंद चुनिंदा लोग ही इस सुरंगनुमा रास्ते का इस्तेमाल कर सकते थे और छोटू के पापा इन्हीं चुनिंदा लोगों में से एक थे।
आज छुट्टी थी और छोटू के पापा घर ही पर आराम फ़रमा रहे थे। नजर बचाकर, चोरी-छिपे छोटू ने पापा का सिक्योरिटी पास हथिया ही लिया और चल दिया सुरंग की तरफ़।
वैसे तो उनकी पूरी कालोनी ही जमीन के नीचे बसी थी। यह जो सुरंगनुमा रास्ता था- अंदर दीये जल रहे थे और प्रवेश करने से पहले एक बंद दरवाजे का सामना करना पड़ता था। दरवाजे में एक खाँचा बना हुआ था। छोटू ने खाँचे में कार्ड डाला, तुरंत दरवाजा खुल गया। छोटू ने सुरंग में प्रवेश किया। अंदर वाले खाँचे में सिक्योरिटी पास आ पहुँचा था। उसे उठा लिया, कार्ड उठाते ही दरवाजा बंद हुआ। छोटू ने चारों तरफ़ नजर दौड़ाई। सुरंगनुमा वह रास्ता ऊपर की तरफ़ जाता था.... यानी ज़मीन के ऊपर का सफ़र कर आने का मौका मिल गया था।
मगर कहाँ? मौका हाथ लगते ही फिसल गया! सुरंग में जगह-जगह लगाए निरीक्षक यंत्रों की जानकारी छोटू को नहीं थी। मगर छोटू के प्रवेश करते ही पहले निरीक्षक यंत्र में संदेहास्पद स्थिति दर्शाने वाली हरकत हुई. इतने छोटे कद का व्यक्ति सुरंग में कैसे आया? दूसरे निरीक्षक यंत्र ने तुरंत छोटू की तसवीर खींच ली। किसी एक नियंत्रण केंद्र में इस तसवीर की जाँच की गई और खतरे की सूचना दी गई।
इन सारी गतिविधियों से अनजान छोटू आगे बढ़ रहा था। तभी जाने कहाँ से सिपाही दौड़े चले आए। छोटू को पकड़कर वापस घर छोड़ आए। घर पर माँ छोटू का इंतज़ार कर रही थी। बस, अब छोटू की खैरियत न थी। छोटू के पापा न होते तो छोटू का बचना मुश्किल था।
"छोड़ो भी! मैं इसे समझा दूँगा सब। फिर वह ऐसी गलती कभी नहीं करेगा।" पापा ने छोटू को बचा लिया। बोले, “छोटू, मैं जहाँ काम करता हूँ न, वह क्षेत्र ज़मीन से ऊपर है। आम आदमी वहाँ नहीं जा सकता, क्योंकि वहाँ के माहौल में जी ही नहीं सकता। "
"तो फिर आप कैसे जाते हैं वहाँ?" छोटू का सवाल लाजिमी था।
"मैं वहाँ एक खास किस्म का स्पेस-सूट पहनकर जाता हूँ। इस स्पेस-सूट से मुझे ऑक्सीजन मिलता है, जिससे मैं साँस ले सकता हूँ। इसी स्पेस-सूट की वजह से बाहर की ठंड से मैं अपने आपको बचा सकता हूँ। खास किस्म के जूतों की वजह से ज़मीन के ऊपर मेरा चलना मुमकिन होता है। जमीन के ऊपर चलने-फिरने के लिए हमें एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है।"
छोटू सुन रहा था। पापा आगे बताने लगे, "एक समय था जब अपने मंगल ग्रह पर सभी लोग ज़मीन के ऊपर ही रहते थे। बगैर किसी तरह के यंत्रों की मदद के बगैर किसी खास किस्म की पोशाक के, हमारे पुरखे ज़मीन के ऊपर रहा करते थे लेकिन धीरे-धीरे वातावरण में परिवर्तन आने लगा। कई तरह के जीव धरती पर रहा करते थे, एक के बाद एक सब मरने लगे। इस परिवर्तन की जड़ में था-सूरज में हुआ परिवर्तन । सूरज से हमें रोशनी मिलती है, ऊष्णता मिलती है। इन्हीं तत्त्वों से जीवों का पोषण होता है। सूरज में परिवर्तन होते ही यहाँ का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया। प्रकृति के बदले हुए रूप का सामना करने में यहाँ के पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, अन्य जीव अक्षम साबित हुए। केवल हमारे पूर्वजों ने इस स्थिति का सामना किया।
"अपने तकनीकी ज्ञान के आधार पर हमने ज़मीन के नीचे अपना घर बना लिया। जमीन के ऊपर लगे विभिन्न यंत्रों के सहारे हम सूर्य-शक्ति, सूरज की रोशनी और गर्मी का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। उन्हीं यंत्रों के सहारे हम यहाँ जमीन के नीचे जी रहे हैं। यंत्र सुचारु रूप से चलते रहें. इसके लिए बड़ी सतर्कता बरतनी पड़ती है। मुझ जैसे कुछ चुनिंदा लोग इन्हीं यंत्रों का ध्यान रखते हैं।"
'बड़ा हो जाऊँगा तो में भी यहीं काम करूंगा। छोटू ने अपनी मशा जाहिर की।
"बिलकुल! मगर उसके लिए खूब पढ़ना होगा। माँ और पापा की बात सुननी होगी!"
माँ ने कहा।
दूसरे दिन छोटू के पापा काम पर चले गए। देखा तो कंट्रोल रूम का वातावरण बदला-बदला सा था। शिफ़्ट खत्म कर घर जा रहे स्टाफ़ के प्रमुख ने टी.वी. स्क्रीन की तरफ़ इशारा किया। स्क्रीन पर एक बिंदु झलक रहा था। वह बताने लगा, “यह कोई आसमान का तारा नहीं है, क्योंकि कंप्यूटर से पता चल रहा है कि यह अपनी जगह अडिग नहीं रहा है। पिछले कुछ घंटों के दौरान इसने अपनी जगह बदली है। कंप्यूटर के अनुसार यह हमारी धरती की तरफ़ बढ़ता चला आ रहा है। '
'अंतरिक्ष यान तो नहीं है?" छोटू के पापा ने अपना संदेह प्रकट किया।
"संदेह हमें भी है। आप अब इस पर बराबर ध्यान रखिएगा।"
छोटू के पापा सोच में डूब गए।
क्या सचमुच अंतरिक्ष यान होगा? कहाँ से आ रहा होगा? सौर मंडल में हमारी धरती के अलावा और कौन से ग्रह पर जीवों का अस्तित्व होगा? कैसे हो सकता है? और अगर होगा भी तो क्या इतनी प्रगति कर चुका होगा कि अंतरिक्ष यान छोड़ सके ?... वैसे तो हमारे पूर्वजों ने भी अंतरिक्ष यानों, उपग्रहों का प्रयोग किया था। मगर अब हमारे लिए यह असंभव है। उसके लिए आवश्यक मात्रा में ऊर्जा तो हो। काशा इस नए मेहमान को नजदीक से देखा जा सकता। हाँ अगर वह इसी तरफ आ रहा होगा, तब तो यह संभव हो सकेगा। देखें।
... अब अंतरिक्ष यान से एक यांत्रिक हाथ बाहर निकला। हर पल उसकी लंबाई बढ़ती ही जा रही थी... छोटू के पापा ने अवलोकन जारी रखा।
कालोनी की प्रबंध समिति की सभा बुलाई गई थी। अध्यक्ष भाषण दे रहे थे "हाल ही में मिली जानकारी से पता चलता है कि दो अंतरिक्ष यान हमारे मंगल ग्रह की तरफ है बढ़ते चले आ रहे हैं। इनमें से एक अंतरिक्ष यान हमारे गिर्द चक्कर काट रहा है। कंप्यूटर के अनुसार ये अंतरिक्ष यान नजदीक के ही किसी ग्रह से छोड़े गए हैं। ऐसी हालत में हमें क्या करना चाहिए इसको कोई सुनिश्चित योजना बनानी जरूरी है। नंबर एक आपका क्या खयाल है?"
कालोनी की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी नंबर एक पर थी। उन्होंने कुछ कागत समेटते हुए बोलना आरंभ किया, "इन दोनों अंतरिक्ष थानों को जलाकर खाक कर देने की क्षमता हम रखते हैं, मगर इससे हमें कोई जानकारी हासिल नहीं हो सकेगी। अंतरिक्ष यान बेकार कर जमीन पर उतरने पर मजबूर कर देने वाले यंत्र हमारे पास नहीं हैं। हालांकि, अगर ये अंतरिक्ष यान खुद-ब-खुद जमीन पर उतरते हैं, तो उन्हें बेकार कर देने की क्षमता हममें अवश्य है मेरी जानकारी के अनुसार इन अंतरिक्ष यानों में सिर्फ यंत्र है। किसी तरह के जीव इनमें सवार नहीं हैं। "
"नंबर एक की बात सही लगती है।" नंबर दो एक वैज्ञानिक थे। वे बोले, " हालाँकि यंत्रों को बेकार कर देने में भी खतरा है। इनके बेकार होते ही दूसरे ग्रह के लोग हमारे बारे में जान जाएँगे। इसलिए मेरी राय में हमें सिर्फ़ अवलोकन करते रहना चाहिए।"
"जहाँ तक हो सके हमें अपने अस्तित्व को छिपाए ही रखना चाहिए, क्योंकि हो सकता है जिन लोगों ने अंतरिक्ष यान भेजे हैं, वे कल को इनसे भी बड़े सक्षम अंतरिक्ष यान भेजें। हमें यहाँ का प्रबंध कुछ इस तरह रखना चाहिए जिससे इन यंत्रों को यह गलतफहमी हो कि इस जमीन पर कोई भी चीज इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है कि जिससे वे लाभ उठा सकें। अध्यक्ष महोदय से में यह दरख्वास्त करता हूँ कि इस तरह का प्रबंध हमारे यहाँ किया जाए।" नंबर तीन सामाजिक व्यवस्था का काम देखते थे। उनकी बात के जवाब में अध्यक्ष कुछ बोलने जा ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी। अध्यक्ष ने चोंगा उठाया, एक मिनट बाद सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “भाइयो, अंतरिक्ष यान क्रमांक एक हमारी ज़मीन पर उतर चुका है।"
वह दिन छोटू के लिए बड़ा ही महत्त्वपूर्ण दिन था। पापा उसे कंट्रोल रूम ले गए यहाँ से अंतरिक्ष यान क्रमांक एक साफ़ नज़र आ रहा था।
'कैसा अजीब लग रहा है यहाँ ! इसके अंदर क्या होगा पापा?" छोटू ने पूछा।
“अभी नहीं बताया जा सकता। दूर से ही उसका निरीक्षण जारी है। उस पर बराबर हमारा ध्यान है और उसके हर अंग पर हमारा नियंत्रण है। वक्त आने पर ही हम अगला कदम उठाएँगे, " छोटू के पापा ने बताया। उन्होंने छोटू को एक कॉन्सोल दिखाया, जिस पर कई बटन थे।
अब अंतरिक्ष यान से एक यांत्रिक हाथ बाहर निकला। हर पल उसकी लंबाई बढ़ती ही जा रही थी। वह शायद जमीन तक पहुँचकर मिट्टी उकेर लेना चाहता था। सब लोग स्क्रीन पर दिखाई दे रही अंतरिक्ष यान की इस हरकत को ध्यान से देख रहे थे सिवा एक के. उसका ध्यान कहीं और ही था।
छोटू का सारा ध्यान था कॉन्सोल पैनल पर कॉन्सोल का एक बटन दबाने की अपनी इच्छा को वह रोक नहीं पाया। वह लाल लाल बटन उसे बरबस अपनी तरफ खींच रहा था। और सहसा खतरे की घंटी बजी। सबकी निगाहें कॉन्सोल की तरफ मुड़ीं। पापा ने छोटू को अपनी तरफ खींचते हुए एक झापड़ रसीद कर दिया और लाल बटन को पूर्व स्थिति में ला रखा।
मगर उस तरफ़ अब अंतरिक्ष यान के उस यांत्रिक हाथ की हरकत सहसा रुक गई थी यंत्र बेकार हो गया था।
उधर पृथ्वी पर नेशनल एअरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) द्वारा प्रस्तुत वक्तव्य ने सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लिया
"मंगल की धरती पर उतरा हुआ अंतरिक्ष यान बाइकिंग अपना निर्धारित कार्य कर रहा है। हालांकि किसी अज्ञात कारणवश अंतरिक्ष यान का यात्रिक हाथ बेकार हो गया है।
नासा के तकनीशियन इस बारे में जाँच कर रहे हैं तथा इस यांत्रिक हाथ को दुरुस्त करने के प्रयास भी जारी हैं..."
इसके कुछ ही दिनों बाद पृथ्वी के सभी प्रमुख अखबारों ने छापा.....
'नासा के तकनीशियनों को रिमोट कंट्रोल के सहारे वाइकिंग को दुरुस्त करने में 44 सफलता मिली है। यांत्रिक हाथ ने अब मंगल की मिट्टी के विभिन्न नमूने इकट्ठे करने का काम आरंभ कर दिया है... "
पृथ्वी के वैज्ञानिक मंगल की इस मिट्टी का अध्ययन करने के लिए बड़े उत्सुक थे। उन्हें उम्मीद थी कि इस मिट्टी के अध्ययन से इस बात का पता लगाया जा सकेगा कि क्या मंगल ग्रह पर भी पृथ्वी की ही तरह जीव सृष्टि का अस्तित्व है। यह प्रश्न आज भी 1 एक रहस्य है।
जयंत विष्णु नार्लीकर
(मराठी से अनुवाद-रेखा देशपांडे)