साँस-साँस में बाँस - एलेक्स एम. जॉर्ज (अनुवाद- शशि सबलोक)
बाँस से मेरा रिश्ता
बाँस का यह झुरमुट मुझे अमीर बना देता है। इससे मैं अपना घर बना सकता हूँ, बाँस के बरतन और औज़ार इस्तेमाल करता हूँ, सूखे बाँस को मैं ईंधन की तरह इस्तेमाल करता हूँ, बाँस का कोयला जलाता हूँ, बाँस का अचार खाता हूँ, बाँस के पालने में मेरा बचपन गुज़रा, पत्नी भी तो मैंने बाँस की टोकरी के ज़रिए पाई और फिर अंत में बाँस पर ही लिटाकर मुझे मरघट ले जाया जाएगा।
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एक जादूगर थे चंगकीचंगलनबा। अपने जीवन में उन्होंने कई बड़े-बड़े करतब दिखलाए। जब मरने को हुए तो लोगों से बोले, “मुझे दफ़नाए जाने के छठे दिन मेरी कब्र खोदकर देखोगे तो कुछ नया सा पाओगे।"
कहा जाता है कि मौत के छठे दिन उनकी कब्र खोदी गई और उसमें से निकले बाँस की टोकरियों के कई सारे डिजाइन। लोगों ने उन्हें देखा. पहले उनकी नकल की और फिर नए डिज़ाइन भी बनाए।
बाँस भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुतायत में होता है। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बाँस बहुत उगता है। इसलिए वहाँ बाँस की चीजें बनाने का चलन भी खूब है। सभी समुदायों के भरण-पोषण में इसका बहुत हाथ है। यहाँ हम खासतौर पर देश के उत्तरी-पूर्वी राज्य नागालैंड की बात करेंगे। नागालैंड के निवासियों में बाँस की चीजें बनाने का खूब प्रचलन है।
इंसान ने जब हाथ से कलात्मक चीजें बनानी शुरू की, बाँस की चीजें तभी से बन रही है। आवश्यकता के अनुसार इसमें बदलाव हुए है और अब भी हो रहे हैं।
कहते हैं कि बाँस की बुनाई का रिश्ता उस दौर से है, जब इंसान भोजन इकट्ठा करता था। शायद भोजन इकट्ठा करने के लिए ही उसने ऐसी डलियानुमा चीजें बनाई होंगी। क्या पता बया जैसी किसी चिड़िया के घोंसले से टोकरी के आकार और बुनावट की तरकीब हाथ लगी हो!
बाँस से केवल टोकरियाँ ही नहीं बनतों, बाम को खपच्चियों से ढेर चीजे बनाई जाती है जैसे–तरह-तरह की चटाइयाँ टोपिया, टोकरियाँ, बरतन, बैलगाड़ियाँ, फ़र्नीचर, सजावटी सामान, जाल, मकान, पुल और खिलौने भी।
असम में ऐसे ही एक जाल, जकाई से मछली पकड़ते हैं। छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए इसे पानी की सतह पर रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे चलते हुए खींचा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे एक शंकु का आकार ले लें। इस शंकु का ऊपरी सिरा अंडाकार होता है। निचले नुकीले सिरे पर खपच्चियाँ एक-दूसरे में गुँथी हुई होती हैं।
खपच्चियों से तरह-तरह की टोपियाँ भी बनाई जाती हैं। असम के चाय बागानों के चित्रों में तुम्हें लोग ऐसी टोपियाँ पहने दिख जाएँगे और हाँ उनकी पीठ पर टँगी बाँस की बड़ी-सी टोकरी देखना न भूलना।
जुलाई से अक्टूबर, घनघोर बारिश के महीने! यानी लोगों के पास बहुत सारा खाली वक्त या कहो आसपास के जंगलों से बाँस इकट्ठा करने का सही वक्त। आमतौर पर वे एक से तीन साल की उम्र वाले बाँस काटते हैं। बूढ़े बाँस सख्त होते हैं और टूट भी तो जाते हैं। बाँस से शाखाएँ और पत्तियाँ अलग कर दी जाती हैं। इसके बाद ऐसे बाँसों को चुना जाता है जिनमें गाँठें दूर-दूर होती हैं। दाओ यानी चौड़े, चाँद जैसी फाल वाले चाकू से इन्हें छीलकर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। खपच्चियों की लंबाई पहले से ही तय कर ली जाती है। मसलन, आसन जैसी छोटी बनाने के लिए बाँस को हरेक गठान से काटा जाता है। लेकिन टोकरी बनाने के लिए हो सकता है कि दो या तीन या चार गठानों वाली लंबी खपच्चियाँ काटी जाएँ। यानी कहाँ से काटा जाएगा यह टोकरी की लंबाई पर निर्भर करता है।
आमतौर पर खपच्चियों की चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है। चौड़ी खपच्चियाँ किसी काम की नहीं होतीं। इन्हें चीरकर पतली खपच्चियाँ बनाई जाती हैं। पतली खपच्चियाँ लचीली होती हैं। खपच्चियाँ चीरना उस्तादी का काम है। हाथों की कलाकारी के बिना खपच्चियों की मोटाई बराबर बनाए रखना आसान नहीं। इस हुनर को पाने में काफ़ी समय लगता है।
टोकरी बनाने से पहले खपच्चियों को चिकना बनाना बहुत ज़रूरी है। यहाँ फिर दाओ काम आता है। खपच्ची बाएँ हाथ में होती है और दाओ दाएँ हाथ में। दाओ का धारदार सिरा खपच्ची को दबाए रहता है जबकि तर्जनी दाओ के एकदम नीचे होती है। इस स्थिति में बाएँ हाथ से खपच्ची को बाहर की ओर खींचा जाता है। इस दौरान दायाँ अँगूठा दाओ को अंदर की ओर दबाता है और दाओ खपच्ची पर दबाव बनाते हुए घिसाई करता है। जब तक खपच्ची एकदम चिकनी नहीं हो जाती. यह प्रक्रिया दोहराई जाती है। इसके बाद होती है खपच्चियों की रंगाई। इसके लिए ज्यादातर गुड़हल, इमली की पत्तियों आदि का उपयोग किया जाता है। काले रंग के लिए उन्हें आम की छाल में लपेटकर कुछ दिनों के लिए मिट्टी में दबाकर रखा जाता है।
बाँस की बुनाई वैसे ही होती है जैसे कोई और बुनाई। पहले खपच्चियों को चित्र में दिखाए गए तरीके से आड़ा-तिरछा रखा जाता है। फिर बाने को बारी-बारी से ताने के ऊपर-नीचे किया जाता है। इससे चैक का डिजाइन बनता है। पलंग की निवाड़ की बुनाई की तरह।
टुइल बुनना हो तो हरेक बाना दो या तीन तानों के ऊपर और नीचे से जाता है। इससे कई सारे डिजाइन बनाए जा सकते हैं।
टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूँथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फैसा दिया जाता है और हमारी टोकरी तैयार! चाहो तो बेची या घर पर ही काम में ले लो।
एलेक्स एम. जॉर्ज (अनुवाद- शशि सबलोक)