मत बांटो इंसान को - विनय महाजन
MAT BANTO INSAAN KO - VINAY MAHAJAN
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने
बांट लिया इंसान को
धरती बांटी, सागर बांटा
मत बांटों इंसान को।
अभी राह तो शुरू हुई है
मंजिल बैठी दूर है
उजियाला महलों में बंदी
हर दीपक मजबूर है।
मिला न सूरज का संदेशा
हर घाटी मैदान को।
धरती बांटी, सागर बांटा
मत बांटों इसान को।
अब भी हरी भरी धरती है
ऊपर नील वितान है
पर न प्यार हो तो जग सूना
जलता रेगिस्तान है।
अभी प्यार का जल देना है
हर प्यासी चट्टान को
धरती बांटी, सागर बांटा
मत बांटों इंसान को।
साथ उठें सब तो पहरा हों
सूरज का हर द्वार पर
हर उदास आंगन का हक हो
खिलती हुई बहार पर।
रौंद न पाएगा फिर कोई
मौसम की मुस्कान को।
धरती बांटी, सागर बांटा मत बांटों इंसान को।