इकाई पाठ – योजना
· कक्षा – दसवीं
· पुस्तक – संचयन
· विषय-वस्तु – कहानी
·
प्रकरण – ‘सपनों के – से दिन’
शिक्षण- उद्देश्य :-
1.
ज्ञानात्मक –
1. मनुष्य-मात्र के स्वभाव एवं व्यवहार की
जानकारी देना।
2. ग्रामीण बच्चों की
मानसिक दशा से अवगत कराना।
3. कहानी की विषयवस्तु को पूर्व में सुनी या
पढ़ी हुई घटना से संबद्ध करना।
4. नए शब्दों के अर्थ समझकर अपने शब्द- भंडार में
वृद्धि करना।
5. साहित्य के गद्य –विधा (संस्मरण)की
जानकारी देना।
6. छात्रों को समाज एवं परिवार के बारे में जानकारी देना।
7. नैतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करना।
8. प्राणि-मात्र के प्रति करूणा, सहानुभूति, प्रेम आदि की भावनाएँ जागृत करना।
9. गाँव के शैक्षिक
वातावरण की ओर ध्यान दिलाना।
2.
कौशलात्मक -
1. स्वयं संस्मरण लिखने की योग्यता का विकास करना।
2. समाज एवं परिवार
की मुश्किलों का
ज्ञान कराना।
3. ग्रामीण परिवेश
एवं व्यवहार की जानकारी देना।
3.
बोधात्मक –
1. लेखक , मास्टर
प्रीतमचंद और हेडमास्टर जैसे चरित्र को समझना।
2. रचनाकार के उद्देश्य को स्पष्ट
करना।
3. कहानी में आए समाज एवं परिवार से संबंधित संवेदनशील स्थलों का
चुनाव करना।
4. समाज में व्याप्त विसंगतियों के
बारे में सजग होना।
4.
प्रयोगात्मक –
1. संस्मरण की
विषयवस्तु को अपने
दैनिक जीवन के संदर्भ में जोड़कर देखना।
2. किसी ग्रामीण बच्चे के
प्रारंभिक जीवन और प्राथमिक शिक्षा के बारे में जानकारी एकत्र
करना।
3. पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखना।
सहायक
शिक्षण – सामग्री:-
1. चाक , डस्टर आदि।
2. पावर प्वाइंट के द्वारा पाठ की प्रस्तुति।
पूर्व ज्ञान:-
1. अपने समाज एवं
परिवार के बारे में
ज्ञान है।
2. परिवार की कठिनाइयों के बारे में ज्ञान है।
3. संस्मरण विधा का प्रारंभिक ज्ञान है।
4. ग्रामीण बच्चों और
उनकी शिक्षा की वर्तमान स्थिति से वाकिफ़ हैं।
5. सामाजिक व्यवस्था से अवगत हैं।
6. मानवीय स्वभाव की जानकारी है।
प्रस्तावना
– प्रश्न :-
1. बच्चो! क्या आप अपने सामाजिक व्यवस्था के बारे में कुछ जानते हैं ?
2. क्या आपने किसी बच्चे को स्कूल के
नाम से डरकर भागते हुए देखा है ?
यदि हाँ, तो उसके बारे में बताइए ।
3. क्या आपका परिवार
संयुक्त परिवार है ? आपके परिवार में कौन-कौन हैं ?
4. अपने गाँव तथा
वहाँ की शिक्षा व्यवस्था के बारे में बताइए।
उद्देश्य कथन :- बच्चो! आज हम लेखक ‘ गुरुदयाल सिंह ’ के द्वारा रचित संस्मरण ‘ सपनों
के – से दिन ’ का अध्ययन करेंगे।
पाठ की इकाइयाँ—
प्रथम
अन्विति—
( लेखक का बचपन , उसका स्कूल से भाग जाना तथा
दोस्तों के साथ मौज़-मस्ती )
· लेखक का अपने
दोस्तों के साथ खेलना और चोटिल होना।
· लेखक का पढ़ने में रुचि न
होना।
· माता-पिता का
बच्चों की पढ़ाई की ओर ध्यान न देना।
· ननिहाल तथा अपने
घर के आस-पास छुट्टियों में खेलना।
· स्कूल का
गृह-कार्य न करना। खेल-कूद में समय बिता देना।
· लेखक का छोटा-सा
स्कूल। स्कूल से भाग जाना।
द्वितीय
अन्विति :- ( हेडमास्टर शर्मा और उनका
प्यारा व्यवहार । मास्टर प्रीतमचंद का छात्रों के साथ बुरा व्यवहार। लेखक की पढ़ाई
पर खर्चा। )
· हेडमास्टर शर्मा का बच्चों के साथ
प्यारा व्यवहार।
· मास्टर प्रीतमचंद
का व्यक्तित्व।
· दूसरे विश्वयुद्ध के समय
अंग्रेज़ों के द्वारा सेना में भर्ती होने के लिए गाँव वालों को ललचाना।
तृतीय अन्विति :- ( मास्टर
प्रीतमचंद के द्वारा बच्चों को सज़ा देना। हेडमास्टर के द्वारा उन्हें नौकरी से मुअत्तल करना और इसका प्रीतमचंद पर कोई असर
न होना। )
· मास्टर प्रीतमचंद का छोटी
कक्षा के छात्रों को कड़ी सज़ा देना।
· हेडमास्टर का उन पर गुस्सा
होना और नौकरी से मुअत्तल कर देना।
· छात्रों के मन में मास्टर
प्रीतमचंद के प्रति भय पैदा होना।
· मास्टर प्रीतमचंद पर
मुअत्तल होने का कोई प्रभाव न पड़ना।
शिक्षण विधि :-
क्रमांक |
अध्यापक - क्रिया |
छात्र - क्रिया |
१. |
संस्मरण का सारांश :- प्रस्तुत कहानी लेखक की
गाँव की अपनी कहानी है। लेखक बचपन में नंगे पाँव , फटी मैली-सी कच्छी तथा टूटे
बटनों वाले कई जगह से फटॆ कुर्ता पहने बिखरे बालों के साथ अपने दोस्तों के साथ
खेलता-कूदता रहता था। जब चोटिल होकर घर आता तो उसे और मार पड़ती। उनको पढ़ने में
रुचि नहीं थी और उनके माता-पिता को भी पढ़ाने में रुचि नहीं थी। पुरानी किताबों
के मिल जाने के कारण वे पढ़ पाए । लेखक अपने परिवार में स्कूल जाने वाला पहला
लड़का था। छुट्टियों में लेखक कभी अपने ननिहाल तो कभी अपने घर के पास स्थित तालाब
में खेल-कूदकर समय बिता देता। स्कूल खुलने का समय नज़दीक आने पर गृह-कार्य पूरा न
होने के कारण घबरा जाता और स्कूल में मास्टरों से मार खाने को तैयार हो जाता।
उसका स्कूल छोटा-सा था। पी.टी. मास्टर प्रीतमचंद बहुत सख्त थे और अनुशासन के
पक्के थे। थोड़ी –सी ग़लती होने पर वे बच्चों की चमड़ी उधेड़ देते थे। अत: सभी विद्यार्थी
उनसे बहुत डरते थे। उनका व्यक्तित्व , पहनावा , चाल-ढाल बच्चों को बहुत डरावना
लगता था। जब स्काउट का परेड होता तो लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगता था। स्काउट
का गणवेश पहनकर वे अपने आप को फ़ौजी जवान समझने लगते थे। हेडमास्टर साहब व्यवहार
के बहुत अच्छे थे। वे कभी किसी बच्चे को नहीं मारते थे। सब बच्चे उन्हें पसंद
करते थे। एक बार पी.टी. सर ने चौथी कक्षा के बच्चों को फ़ारसी का एक शब्द रूप याद
करने को दिया , पर कठिन होने के कारण बच्चे याद नहीं कर पाए। इस पर गुस्सा होकर
उन्होंने सबको कड़ी सज़ा दी। हेडमास्टर साहब ने यह देख लिया। उन्हें यह अच्छा नहीं
लगा। उन्होंने शिक्षा-विभाग के हवाले से उन्हें नौकरी से मुअत्तल कर दिया।
मास्टर प्रीतमचंद अब स्कूल नहीं आते थे , फिर भी बच्चों को डर लगा रहता था कि
कहीं वे वापस न आ जाएँ। लेकिन प्रीतमचंद को इस बात की ज़रा भी चिंता नहीं थी। वे
बड़े मज़े से अपने एक कमरे वाले घर में रहकर अपने पालतू तोते को बादाम खिलाते थे
और उससे मीठी-मीठी बातें करते थे। |
संस्मरण
को ध्यानपूर्वक
सुनना और समझने का प्रयास करना। नायक के चरित्र पर तथा शैक्षिक व्यवस्था पर अपने विचार प्रस्तुत करना। |
२. |
लेखक-परिचय :- ‘ गुरुदयाल सिंह
’(
जन्म-१९३३ ) एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं
जिन्होंने अपनी
कहानियों में ग्रामीण जीवन को बखूबी उकेरा है।पंजाब के जैतो कस्बे में १० जनवरी
१९३३ को एक साधारण परिवार में जन्मे गुरुदयाल सिंह कीलों हथौड़ों से काम लेते हुए
अपनी शिक्षा पूरी की। १९५४ से १९७० तक स्कूल में अध्यापक रहे। अंतत: युनिवर्सिटी
में प्रोफ़ेसर के पद अवकाश ग्रहण किया। उनकी पहली कहानी १९५७ में ‘ पंच दरिया ’
पत्रिका में प्रकाशित हुई। गुरुदयाल ठेठे ग्रामीण परिवेश और भावबोध लेखक के रूप
में जाने जाते हैं। पंजाबी भाषा में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें ज्ञानपीठ
पुरस्कार के अलावा साहित्य अकादमी ,
सोवियत लैंड नेहेरु सम्मान , पंजाब साहित्य अकादमी सहित अन्य कई पुरस्कारों से
सम्मानित किया गया है। उन्होंने अब तक
नौ उपन्यास , दस कहानी संग्रह , एक नातक , एक एकांकी संग्रह ,
बाल-साहित्य की दस पुस्तकें और विविध गद्य की दो पुस्तकों की रचना की है।
गुरुदयाल की प्रमुख कृतियाँ हैं – मढ़ी का दीवा , अथ-चाँदनी रात , पाँचवा पहर ,
सब देश पराया , साँझ-सबेरे और क्या जानूँ मैं कौन (आत्मकथा)। |
लेखक के
बारे में आवश्यक जानकारियाँ अपनी अभ्यास –पुस्तिका में लिखना। |
३. |
शिक्षक के
द्वारा पाठ का उच्च स्वर में पठन करना। |
उच्चारण
एवं पठन – शैली को ध्यान से सुनना। |
४. |
पाठ के
अवतरणों की व्याख्या करना। |
पाठ को
हॄदयंगम करने की क्षमता को विकसित करने के लिए पाठ को ध्यान से सुनना। पाठ से संबधित
अपनी जिज्ञासाओं का निराकरण करना। |
५. |
कठिन
शब्दों के अर्थ :- लंडे
– हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि , ननिहाल – नानी का घर , चपत –
थप्पड़ , हरफ़नमौला – पारंगत/विद्वान , अठे – यहाँ , लीतर – टूटे हुए पुराने
खस्ताहाल जूते, मुअत्तल – निलंबित , अलौकिक – अनोखा , महकमाए- तालीम –
शिक्षा-विभाग । |
छात्रों
द्वारा शब्दों के अर्थ अपनी अभ्यास-पुस्तिका में लिखना। |
६. |
छात्रों
द्वारा पठित अनुच्छेदों में होने वाले उच्चारण संबधी अशुद्धियों को दूर
करना। |
छात्रों
द्वारा पठन। |
गृह
– कार्य :-
1. पाठ का सही उच्चारण के साथ उच्च
स्वर मेँ पठन करना।
2. पाठ के प्रश्न – अभ्यास
करना।
3. पाठ के प्रमुख तथ्यों की संक्षेप में
सूची तैयार करना।
4. पाठ में आए कठिन शब्दों का अपने
वाक्यों में प्रयोग करना।
परियोजना कार्य :-
1. अपने गाँव की शैक्षणिक
समस्याओं पर लेख लिखना।
2. समाज में व्याप्त किसी समस्या पर
आधारित कोई कहानी या लेख लिखना।
मूल्यांकन :-
निम्न
विधियों से मूल्यांकन किया जाएगा :-
1. पाठ्य-पुस्तक के बोधात्मक प्रश्न—
o
पी.टी. साहब की ‘ शाबाश ’ फ़ौज के तमगों –सी क्यों
लगती थी ?
o
हेडमास्टर शर्मा जी ने पी.टी. साहब को क्यों
मुअत्तल कर दिया ?
o
पी.टी. सर चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
o
स्काउट
परेड करते समय लेखक स्वयं को महत्त्वपूर्ण आदमी ‘ फ़ौजी जवान ’ क्यों समझने लगता था
?
o
विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में
अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार
प्रकट कीजिए।
2. इकाई परीक्षाएँ
3. गृह –
कार्य
4. परियोजना - कार्य