दोहा कोश (DOHA KOSH)
The Philosophical Depth of "Dohas"
Brevity is the soul, not just of wit but also wisdom.
Dohas are pearls of wisdom. They plumb the depths of life. The raw thought that is gold, is fashioned, with great craftsmanship, and the Dohas are created by Gifted Geniuses.
And you read/listen... to the Light... shining brilliance, delighting you, reaching deep into you, flooding you, with that illumination and priceless love, and tears you apart...
Tears rolling down...
And YOU discover... a strange thing.
You discover the Gold in YOU!!
Seeking god, you find the God within!!
That is the philosophical depth of "Dohas"....
Open yourself to the Light within... Find bliss.
Read/listen...in deep meditative silence...
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KABIR KE DOHE
कबीर का परिचय | KABIR KA PARICHAY
तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
कबीर लहरि समंदर की, मोती बिखरे आई | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोया | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
जाति न पूछो साथ की, पूछ लीजिए ज्ञान | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय | कबीर की साखियाँ | KABIR KE SAKHI
पोथी-पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
रात गंवाई सोय कर, दिवस गंवायो खाय | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
कबीर गर्व न कीजिये, काल गहे कर केस | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
बोली तो अनमोल है, जो कोइ जानै बोल | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
सतगुरु की महिमा अनँत, अनँत किया उपकार | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
पखापखी के कारने, सब जग रहा भुलान | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
हिंदु मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाँहि | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
हम घर जाल्या आपणाँ लिया मुराड़ा हाथि | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
निंदक नेडा राखिए आँगन कुटी बंधाई | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
सुखिया सब संसार है, खाए अरु सोवै | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
गुरू गोविन्द दोऊ खडे, काके लागौ पॉय | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
साई इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय | कबीर के दोहे | KABIR KE DOHE
दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
ज्यों तिल माँही तेल है, ज्यों चकमक में आगि | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
जिनि ढूँढा तिनि पाइयाँ, गहरे पानी पैठि | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
सोना सज्जन साधु जन टूटि जुरै सौ बार | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
मनिषा जनम दुर्लभ है, देह न बारम्बार | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
धीरे-धीरे रे मना, धीरे-धीरे सब कुछ होय | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
जो तोको काँटा बुबै ताहि बोय तू फूल | कबीर दास के दोहे | KABIR KE DOHE
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TULSI KE DOHE
तुलसी का परिचय | TULSI KA PARICHAY
सोई ज्ञानी सोई गुनी जन, सोई दाता ध्यानी | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
तुलसी पावस के समै, धरीं कोकिला मौन | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
सम कंचन काँचौ गिनत, सत्रु मित्र सम होइ | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
तुलसी या संसार में, सबसे मिलिए धाय | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
सूचे मन. सूधे वचन. सूधी सब करतूति | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
सूचे मन. सूधे वचन. सूधी सब करतूति | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
चरन-चोंच-लोचन रंगौ, चलौ मराली चाल | तुलसी के दोहे |TULSI KE DOHE
साखी, सबदी दोहरा, कहि कहनी, उपखान | तुलसी के दोहे | TULSI KE DOHE
रोष न रसना खोलिए, बरु खोलिओ तरवारि | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
गोधन, गजधन, बाजिधन और रतनधन खान | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
जड़ चेतन, गुण-दोषमय, विस्व कीन्ह करतार | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
तुलसी काया खेत है, मनसा भयो किसान | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
बहुसुत, बहुरुचि, बहुवचन, बहु अचार-व्यौहार | तुलसी के दोहे | TULSIDAS KE DOHA
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RAHIM KE DOHE
रहीम का परिचय | RAHIM KA PARICHAY
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
बिगरी बात बनै नहिं, लाख करो किन कोय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत। | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन निज संपति बिना कोउ न बिपति सहाय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह। | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल | रहिम के दोहे | RAHIM KE DOHE
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन विद्या, बुद्धि नहिं, नहीं धरम जस दान | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
समय पाय फल होत है, समय पाइ झरिं जात। | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHA
तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHA
जो रहीम मन हाथ है, तो तन कहु बिन जाहि । रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHA
गरीब सो हित करै, धनि रहीम वे लोग । रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHA
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि | रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHA
बड़े बड़ाई न करै, बड़े न बोलें बोल। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHE
रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच। रहीम के दोहे | RAHIM KE DOHA
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BIHARI KE DOHE
बिहारी का परिचय | BIHARI KA PARICHAY
बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
दीरघ साँस न लेहु दुःख, सु साईहिं न भूल | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
मेरी भव-बाधा हरौ, राधा नागरि सोय | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
अति अगाधु, अति औथरौ नदी, कूप, सरु, बाइ | बिहारी के दोहे| BIHARI KE DOHE
समै पलटि पलटै प्रकृति को न तजै निज चाल | बिहारी के दोहे| BIHARI KE DOHE
समै-समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
बढ़त-बढ़त सम्पति-सलिलु मन-सरोज बढ़ि जाइ | बिहारी के दोहे| BIHARI KE DOHE
सतसैया कै दोहरे अरु नावकु कै तीरु | बिहारी के दोहे| BIHARI KE DOHE
कनक-कनक तैं सौ गुनी, मादकता अधिकाइ | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
नर की अरु नल नीर की, गति एके कर जोई | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोई | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आई | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनें गात | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
कोक कोटिक संग्रहों कोऊ लाख हजार | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
अंग-अंग नग जगमगत, दीपसिखा सी देह | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHE
इही आस अटक्यौ रहतु, अलि गुलाब के मूल | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHA
बड़े न हूजै गुनन बिनु, बिरुद बड़ाई पाइ | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHA
जपमाला, छापै तिलक, सरै न एकौ कामु | बिहारी के दोहे | BIHARI KE DOHA
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VRUND KE DOHE
वृन्द का परिचय | VRUND KA PARICHAY
उत्तम जन के संग में, सहजे ही सुखभासि | वृन्द के दोहे | VRUND KE DOHE
करत-करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान | वृन्द के दोहे | VRUND KE DOHE
नीकी पै फीकी लगे, बिन अवसर की बाता | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
प्रान तुषातुर के रहे, थोरेहूँ जलपान | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
रहे समीप बड़ेन को, होत बड़ो हित मेल | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
जैसे बंधन प्रेम को, तैसो बंधन और | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
ज्योति सरूपी हिये बसै, सब सरीर में ज्योति | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
प्रकृति मिले मत मिलत है, अनमिलते न मिलाय | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
भेस बनाये सूर को, कायर सूर न होय | वृंद के दोहे | VRUND KE DOHE
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोइ | वृन्द के दोहे | VRUND KE DOHE
जपत एक हरिनाम ते, पातक कोटि बिलाय | वृन्द के दोहे | VRIND KA DOHA
मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान | वृन्द के दोहे | VRUND KA DOHA
नैना देत बताय सब, हिय को हेत आहेत | वृन्द के दोहे | VRIND KA DOHA